Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दूसरा स्थान पद - नैरयिक स्थान :
१७९
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नरकावास हैं, ऐसा कहा गया है। वे नरक अंदर से गोल, बाहर से चौकोण और नीचे से क्षुरप्र-उस्तुरे के आकार वाले हैं। वे प्रकाश के अभाव में निरन्तर अंधकार वाले, ग्रह, चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्र, तारे आदि ज्योतिष्कों की प्रभा से रहित हैं। उनके तलभाग मेद, चर्बी, मवाद के पटल, रुधिर और मांस के कीचड के लेप से लिप्त अशुचि अपवित्र, बीभत्स अत्यंत दुर्गन्धित, कापोत वर्ण की अग्नि जैसे रंग के, कर्कश (कठोर) स्पर्शवाले, दुःसह और अशुभ नरक हैं। उन नरकों में अशुभ वेदनाएँ हैं। इनमें वालुकाप्रभा पृथ्वी के पर्याप्तक और अपर्याप्तक नैरयिकों के स्थान कहे गये हैं। वे उपपात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में, समुद्घात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में और स्व स्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में है। वहाँ वालुकाप्रभा पृथ्वी के बहुत से नैरयिक निवास करते हैं। हे आयुष्मन् श्रमणो! वे काले, काली आभा वाले, गंभीर रोमाञ्च वाले, भीम (भयंकर), उत्कट त्रासजनक और अतीव काले वर्ण के कहे गये हैं। वे नित्य भयभीत, सदैव त्रस्त, नित्य (परमाधार्मिक देवों द्वारा और परस्पर) त्रास पहुँचाए हुए. सदैव उद्विग्न तथा नित्य अत्यंत अशुभ रूप और संबद्ध-निरंतर नरक भय का प्रत्यक्ष अनुभव करते हुए रहते हैं।
कहि णं भंते! पंकष्पभा पुढवी जेरइयाणं पज्जत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता? कहि णं भंते! पंकप्पभा पुढवी जेरइया परिवसंति? गोयमा! पंकप्पभा पुढवीए वीसुत्तर जोयण सयसहस्स-बाहल्लाए उर्वरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हिट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता मज्झे अट्ठारसुत्तरें जोयणसयसहस्से, एत्थ णं पंकप्पभा पुढवी णेरइयाणं दस णिरयावास सयसहस्सा भवंतीति मक्खायं। ते णं णरगा अंतो वट्टा, बाहिं चउरंसा, अहे खुरप्पसंठाणसंठिया, णिच्चंधयार तमसा, ववगय गह-चंद-सूरणक्खत्तजोइसियप्पहा, मेद-वसा-पूयपडल-रुहिर-मंसचिक्खिल्ल-लित्ताणुलेवणतला, असुई वीसा परमदुब्भिगंधा, काउअगणिवण्णाभा, कक्खडफासा, दुरहियासा, असुभा । णरगा, असुभा णरगेसु वेयणाओ, एत्थ णं पंकप्पभा पुढवी जेरइयाणं पजत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखिजइ भागे, समुग्घाएणं. लोयस्स असंखिज्जइ भागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखिज्जइ भागे। तत्थ णं बहवे पंकप्पभा पुढवी णेरइया परिवति। काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणगा परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो!। ते णं तत्थ णिच्चं भीया, णिच्चं तत्था, णिच्चं तसिया, णिच्चं उव्विग्गा, णिच्चं परममसुहसंबद्धं णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति॥१०॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक पंकप्रभा नामक चौथी पृथ्वी (नरक) के नैरयिकों के स्थान कहां कहे गये हैं ? हे भगवन् ! पंकप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कहां रहते हैं?
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