Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - पंचेन्द्रिय जीव प्रज्ञापना
प्रश्न- संक्लिश्यमान किसे कहते हैं ?
उत्तर ग्यारहवें गुणस्थान से लौट कर वापिस दसवें गुणस्थान आदि में आया हुआ जीव संक्लिश्यमान कहलाता है।
प्रश्न – विशुद्धयमान किसे कहते हैं ?
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उत्तर - नौंवे गुणस्थान से ऊपर चढ कर दसवें और ग्यारहवें गुणस्थान में आया हुआ जीव विशुद्धमान कहलाता है ।
से किं तं वीयराय चरित्तारिया ? वीयराय चरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - वसंत कसाय वीयराय चरित्तारिया य खीण कसाय वीयराय चरित्तारिया य ।
से किं तं वसंत कसाय वीयराय चरित्तारिया ? उवसंत कसाय वीयराय चरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तंजहा पढम समय उवसंत कसाय वीयराय चरित्तारिया य अपढम समय उवसंत कसाय वीयराय चरित्तारिया य । अहवा चरिम समय उवसंत कसाय वीयराय चरित्तारिया य अचरिम समय उवसंत कसाय वीयराय चरित्तारिया ? खीण कसाय वीयराय चरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - छउमत्थ खीण कसाय वीयराय चरित्तारिया य केवलि खीण कसाय वीयराय चरित्तारिया य ।
भावार्थ - प्रश्न- वीतराग चारित्र आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - वीतराग चारित्र आर्य दो प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं- उपशान्त कषायवीतराग चारित्र आर्य और क्षीण कषाय वीतराग चारित्र आर्य ।
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प्रश्न- उपशान्त कषाय वीतराग चारित्र आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - उपशान्त कषाय वीतराग चारित्र आर्य दो प्रकार के कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं- प्रथम समय उपशान्त कषाय वीतराग चारित्र आर्य और अप्रथमसमय उपशान्त कषायवीतराग चारित्र आर्य अथवा चरम समय उपशान्त कषाय वीतराग चारित्र आर्य और अचरम समय उपशान्त कषाय वीतराग चारित्र आर्य। इस प्रकार उपशान्त कषाय वीतराग चारित्र आर्य कहे हैं ।
प्रश्न- क्षीण कषाय वीतराग चारित्र आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - क्षीण कषाय वीतराग चारित्र आर्य दो प्रकार के कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं- छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग चारित्र आर्य और केवलीक्षीण कषाय वीतराग चारित्र आर्य ।
प्रश्न- छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग चारित्र आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग चारित्र आर्य दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा - स्वयंबुद्ध छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग चारित्र आर्य और बुद्धबोधित छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग चारित्र आर्य ।
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