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दूसरा स्थान पद - चउरिन्द्रिय स्थान
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पजत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेजइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेजइभागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेजइभागे॥९३॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक तेइन्द्रिय जीवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! ऊर्ध्वलोक में उसके एक देश भाग में होते हैं, अधोलोक में उसके एक देश भाग में होते हैं। तिर्यग्लोक में - कुओं में, तालाबों में, नदियों में, द्रहों में, वापियों में, पुष्करिणियों में, दीर्घिकाओं में, गुंजालिकाओं में, सरोवरों में, पंक्तिबद्ध सरोवरों में, सरसर पंक्तियों में, बिलों में, पंक्तिबद्ध बिलों में, पर्वतीय जल प्रवाहों में, निर्झरों में, तलैयों में, पोखरों में, वप्रों में, द्वीपों में, समुद्रों में, सभी जलाशयों में तथा समस्त जल स्थानों में पर्याप्तक और अपर्याप्तक तेइन्द्रिय जीवों के स्थान कहे गये हैं। उपपात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं, समुद्घात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं और स्वस्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं।
विवेचन - अपर्याप्तक और पर्याप्तक सभी तेइन्द्रिय जीवों के स्वस्थान, उपपात और समुद्घात ये तीनों आलापक लोक के असंख्यातवें भाग में ही होते हैं।
चरिन्द्रिय-स्थान कहि णं भंते! चउरिदियाणं पज्जत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता? गोयमा! उड्डलोए तदेक्क देसभागे, अहोलोए तदेक्क देसभागे, तिरियलोए अगडेसु, तलाएस, णदीसु, दहेसु, वावीसु, पुक्खरिणीसु, दीहियासु, गुंजालियासु, सरेसु, सरपंतियासु, सरसरपंतियासु, बिलेसु, बिलपंतियासु, उज्झरेसु, णिज्झेरेसु, चिल्ललेसु, पल्ललेसु, वप्पिणेसु, दीवेसु, समुद्देसु, सव्वेसु चेव जलासएसु, जलढाणेसु, एत्थ णं चउरिदियाणं पजत्तापजत्त णं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेजइ भागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेजइ भागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेजइ भागे॥९४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक चउरिन्द्रिय जीवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! ऊर्ध्वलोक में उसके एक देश भाग में होते हैं, अधोलोक में उसके एक देश भाग में होते हैं। तिर्यग्लोक में - कुओं में, तालाबों में, नदियों में, द्रहों में, वापियों में, पुष्करिणियों में, दीर्घिकाओं में, गुंजालिकाओं में, सरोवरों में, पंक्तिबद्ध सरोवरों में, सरसर पंक्तियों में, बिलों में, पंक्तिबद्ध बिलों में, पर्वतीय जल प्रवाहों में, निझरों में, तलैयों में, पोखरों में, वप्रों में, द्वीपों में, समुद्रों में, सभी जलाशयों में तथा समस्त जल स्थानों में पर्याप्त और अपर्याप्त चउरिन्द्रिय जीवों के स्थान कहे
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