Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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१७२.
प्रज्ञापना सूत्र
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गये हैं। उपपात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं, समुद्घात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं और स्वस्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं।
विवेचन - अपर्याप्तक और पर्याप्तक सभी चउरिन्द्रिय जीवों के स्वस्थान, उपपात और समुद्घात ये तीनों आलापक लोक के असंख्यातवें भाग में ही होते हैं।
पंचेन्द्रिय-स्थान कहि णं भंते! पंचिंदियाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता? गोयमा! उड्डलोए तदेक्क देसभाए, अहोलोए तदेक्क देसभाए, तिरियलोए अगडेसु, तलाएसु, णदीसु, दहेसु, वावीसु, पुक्खरिणीसु, दीहियासु, गुंजालियासु, सरेसु, सरपंतियासु, सरसरपंतियासु, बिलेसु, बिलपंतियासु, उज्झरेसु, णिज्झरेसु, चिल्ललेसु, पल्ललेसु, वप्पिणेसु, दीवेसु, समुद्देसु, सव्वेसु चेव जलासएसु, जलट्ठाणेसु, एत्थ णं पंचिंदियाणं पजत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेजइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेजइभागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेजइभागे॥९५॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक पंचेन्द्रिय जीवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! ऊर्ध्वलोक में उसके एक देश भाग में होते हैं, अधोलोक में उसके एक देश भाग में होते हैं। तिर्यग्लोक में - कुओं में, तालाबों में, नदियों में, द्रहों में, वापियों में, पुष्करिणियों में, दीर्घिकाओं में, गुंजालिकाओं में, सरोवरों में, पंक्तिबद्ध सरोवरों में, सरसर पंक्तियों में, बिलों में, पंक्तिबद्ध बिलों में, पर्वतीय जल प्रवाहों में, निर्झरों में, तलैयों में, पोखरों में, वप्रों में, द्वीपों में, समुद्रों में, सभी जलाशयों में तथा समस्त जल स्थानों में पर्याप्तक और अपर्याप्तक पंचेन्द्रिय जीवों के स्थान कहे गये हैं। उपपात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं, समुद्घात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं और स्वस्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं। ..., विवेचन - प्रस्तुत सूत्रों में क्रमशः बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और सामान्य पंचेन्द्रिय पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवों के स्थानों का निरूपण किया गया है।
यहाँ पर सामान्य रूप से पंचेन्द्रिय जीवों का कथन किया गया है। नैरयिक मनुष्य और देव तो पंचेन्द्रिय ही होते हैं। तिर्यंचों में पांच भेद होते हैं। उनमें से एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरेन्द्रिय जीवों का कथन पहले किया जा चुका है। यहाँ पर सिर्फ तिर्यंचों में पंचेन्द्रिय तिर्यंच ही लिये गये हैं। इस प्रकार इन चारों प्रकार के पंचेन्द्रिय जीवों का स्वस्थान, उपपात और समुद्घात ये तीनों आलापक लोक के असंख्यातवें भाग में ही होते हैं।
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