Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - पंचेन्द्रिय जीव प्रज्ञापना
१४५
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सूक्ष्म सम्पराय चारित्र के दो भेद हैं - विशुद्ध्यमान और संक्लिश्यमान।
क्षपक श्रेणी या उपशम श्रेणी पर चढ़ने वाले साधु के परिणाम उत्तरोत्तर शुद्ध रहने से उनका सूक्ष्म सम्पराय चारित्र विशुद्ध्यमान कहलाता है।
उपशम श्रेणी से वापिस लौटते हुए साधु के परिणाम संक्लेश युक्त होते हैं इसलिए उनका सूक्ष्म सम्पराय चारित्र संक्लिश्यमान कहलाता है।
५. यथाख्यात चारित्र - कषाय का सर्वथा उदय न होने से अतिचार रहित पारमार्थिक रूप से प्रसिद्ध चारित्र यथाख्यात चारित्र कहलाता है। अथवा अकषायी साधु का निरतिचार यथार्थ चारित्र यथाख्यात चारित्र कहलाता है।
___ छद्मस्थ और केवली के भेद से यथाख्यात चारित्र के दो भेद हैं। अथवा उपशान्त मोह और क्षीण मोह, या प्रतिपाती और अप्रतिपाती के भेद से इसके दो भेद हैं। .. सयोगी केवली और अयोगी केवली के भेद से केवली यथाख्यात चारित्र के दो भेद हैं।
देवजीव प्रज्ञापना - से किं तं देवा? देवा चउव्विहा पण्णत्ता। तंजहा - भतणवासी, वाणमंतरा, जोइसिया, वेमाणिया।
से किं तं भवणवासी? भवणवासी दसविहा पण्णत्ता। तंजहा - असुरकुमारा, णागकुमारा, सुवण्णकुमारा, विजुकुमारा, अग्गिकुमारा, दीवकुमारा, उदहिकुमारा, दिसाकुमारा, वाउकुमारा, थणियकुमारा। ते समासओ दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - पज्जत्तगा य अपजत्तगा य। से तं भवणवासी।
भावार्थ - प्रश्न - देव कितने प्रकार के कहे गये हैं?
उत्तर - देव चार प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. भवनवासी २. वाणव्यन्तर ३. ज्योतिष्क और ४. वैमानिक।
प्रश्न - भवनवासी देव कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - भवनवासी देव दस प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. असुरकुमार २. नागकुमार ३. सुवर्णकुमार ४. विद्युत्कुमार ५. अग्निकुमार ६. द्वीपकुमार ७. उदधिकुमार ८. दिशाकुमार ९. वायुकुमार और १०. स्तनितकुमार। ये संक्षेप में दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - पर्याप्त और २. अपर्याप्त। इस प्रकार भवनवासी देव कहे गये हैं।
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