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१०६
प्रज्ञापना सूत्र
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भावार्थ - प्रश्न - भुजपरिसर्प कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - भुजपरिसर्प अनेक प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं- नकुल (नेवले), सेहा, शरट (गिरगिट), शल्य, सरंठ, सार, खोर, घरोली (छिपकली) विषम्भरा, मूषक (चूहा), मंगुस (गिलहरी), पयोलातिक (प्रचलायित) छीर विडालिका (क्षीर विरालिय), जोहा, चतुष्पद इसी प्रकार के अन्य जितने भी प्राणी हैं, उन्हें भुजपरिसर्प समझना चाहिये। वे संक्षेप में दो प्रकार के हैं-सम्मूछिम और गर्भज। इनमें से जो सम्मूछिम हैं वे सभी नपुंसक होते हैं। इनमें से जो गर्भज हैं वे तीन प्रकार के कहे गये हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक। ऐसे पर्याप्त और अपर्याप्त भुज परिसरों के नौ लाख जाति कुलकोटियोनि प्रमुख होते हैं। ऐसा कहा है। यह भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक योनिकों का वर्णन हुआ। इस प्रकार परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों का वर्णन हुआ। ___ से किं तं खहयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया? खहयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया चउव्विहा पण्णत्ता। तंजहा - चम्मपक्खी, लोमपक्खी, समुग्गपक्खी, . विययपक्खी।
से किं तं चम्मपक्खी? चम्मपक्खी अणेगविहा पण्णत्ता। तंजहा - वग्गुली, जलोया, अडिल्ला, भारंडपक्खी, जीवंजीवा, समुद्दवायसा, कण्णत्तिया, पक्खिविरालिया, जेयावण्णे तहप्पगारा।से तं चम्मपक्खी।
से किं तं लोमपक्खी? लोमपक्खी अणेगविहा पण्णत्ता। तंजहा - ढंका, कंका, कुरला, वायसा, चक्कागा, हंसा, कलहंसा, रायहंसा, पायहंसा, आडा, सेडी, बगा, बलागा, पारिप्पवा, कोंचा, सारसा, मेसरा, मसूरा, मऊरा, सत्तहत्था( सतवच्छा), गहरा, पोंडरिया, कागा, कामिंजुया, वंजुलया, तित्तिरा, वडगा, लावगा, कवोया, कविंजला, पारेवया, चिडगा, चासा, कुक्कुडा, सुगा, बरहिणा मयणसलागा, कोइला, सेहा, वरिल्लगमाई।से तं लोमपक्खी।
से किं तं समुग्गपक्खी? समुग्गपक्खी एगागारा पण्णत्ता। ते णं णत्थि इहं, बाहिरएसु दीवसमुद्देसु भवंति।से तं समुग्गपक्खी।
से किं तं विययपक्खी? विययपक्खी एगागारा पण्णत्ता। ते णं णत्थि इहं, बाहिरएसु दीवसमुद्देसु भवंति।से तं विययपक्खी ।
ते समासओ दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - संमुच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य। तत्थ णं जे ते संमुच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा। तत्थ णं जे ते गब्भवक्वंतिया ते तिविहा पण्णत्ता।
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