Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
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अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण होती है। इनकी आयु अन्तर्मुहूर्त की होती है अर्थात् ये अन्तर्मुहूर्त में अपर्याप्त अवस्था में ही मर जाते हैं। ___यहाँ मूल पाठ में "सव्वाहि पज्जत्तीहिं अपजत्तगा" शब्द दिया है तथा भावार्थ में भी इसका अर्थ किया है- "सभी पर्याप्तियों से अपर्याप्त।" इसका आशय इस प्रकार समझना चाहिए कि आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति और इन्द्रिय पर्याप्ति इन तीन पर्याप्तियों को पूर्ण करने से पहले किसी भी जीव की मृत्यु होती ही नहीं है। इसलिए सम्मूछिम मनुष्य भी इन तीन पर्याप्तियों को पूर्ण करने के बाद चौथी श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति को पूर्ण करने के पहले ही उसकी मृत्यु हो जाती है इसलिए वह अपर्याप्तक कहलाता है। किन्तु उपरोक्त पाठ का यह अर्थ नहीं समझना चाहिए कि सम्मूछिम मनुष्य के आहार, शरीर आदि कोई भी पर्याप्ति पूर्ण हुए बिना ही उसकी मृत्यु हो जाती है। किन्तु ऐसा अर्थ समझना चाहिए कि सम्मूछिम मनुष्य भी आहार, शरीर और इन्द्रिय इन तीन पर्याप्तियों को तो पूर्ण कर ही लेता है। चौथी पर्याप्ति को पूर्ण करने से पहले उसकी मृत्यु हो जाती है। इसलिए वह अपर्याप्तक कहलाता है। कितनेक प्राणी चार पर्याप्तियों के पर्याप्तक होते हैं कितनेक पांच पर्याप्तियों के पर्याप्तक होते हैं तथा कितनेक प्राणी छह पर्याप्तियों के पर्याप्तक होते हैं। सम्मूछिम मनुष्य उपरोक्त तीनों प्रकार के पर्याप्तकों में से किसी भी प्रकार के पर्याप्तक नहीं होने से उन्हें यहाँ पर 'सव्वाहि पजत्तीहिं' अपजत्तगा' कहा गया है।
प्रश्न - यहाँ मूल पाठ में "सव्वेसु चेव असुइट्ठाणेसु" शब्द दिया है इसका क्या अर्थ है ?
उत्तर - यहाँ सम्मूछिम मनुष्यों के उत्पन्न होने के चौदह स्थान बतलाये गये हैं उनमें से मूत्र, विष्ठा, वमन आदि में अलग-अलग रहते हुए भी सम्मूछिम मनुष्य पैदा होता है और यदि उपरोक्त स्थानों में से दो (विष्ठा और मूत्र आदि) या तीन या चार यावत् तेरह ही स्थान एक जगह इकट्ठे कर दिये जाय या एक जगह इकट्ठे हो जाय तो वह एक अलग चौदहवां स्थान गिना जाता है उसमें भी सम्मूच्छिम मनुष्य पैदा होते रहते हैं। ऐसा प्रसङ्ग प्रायः अस्पतालों में बनता रहता है क्योंकि वहाँ अनेक प्रकार के रोगी आते रहते हैं।
आपरेशन भी होता रहता है । इसलिये मल, मूत्र, खून पीप, वमन, आदि अनेक पदार्थों का परस्पर सम्मिश्रण हो जाता है। ऐसे स्थान को यहाँ वर्णित चौदहवां स्थान समझना चाहिए।
प्रश्न - क्या मनुष्य के थूक में भी सम्मूर्छिम मनुष्य पैदा होते हैं ?
उत्तर - नहीं। क्योंकि रक्त, पीप, वमन आदि तो कभी किसी व्यक्ति विशेष में बाहर निकले हुए पाये जाते हैं उनमें भी तीर्थङ्कर भगवन्तों ने सम्मूछिम मनुष्यों की उत्पत्ति बतलाई तो भला थूक तो मनुष्य के मुँह में हर समय पाया ही जाता है फिर यदि उसमें (थूक में) सम्मूछिम मनुष्यों की उत्पत्ति होती तो उसको एक अलग स्थान बतला देते। परन्तु ऐसा नहीं बतलाया गया है। अतएव यह स्पष्ट है
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