Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
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विवेचन - एकेन्द्रिय के पृथ्वीकायिक आदि पांच भेद होने से एकेन्द्रिय संसार समापन जीव प्रज्ञापना पांच प्रकार की कही गयी है। पृथ्वी ही जिन जीवों का काय (शरीर) है वे पृथ्वीकायिक कहलाते हैं। अप (जल) ही जिनका शरीर है वे अप्कायिक, तेज (अग्नि) ही जिनका शरीर है वे तेजस्कायिक, वायु (हवा) ही जिनका शरीर है वे वायुकायिक और लता आदि वनस्पति ही जिनका शरीर है वे वनस्पतिकायिक कहलाते हैं। पृथ्वी समस्त प्राणियों की आधार भूत होने से सर्वप्रथम पृथ्वीकायिक का ग्रहण किया है। अप्कायिक पृथ्वी के आश्रित हैं अत: पृथ्वीकाय के बाद अप्कायिक का ग्रहण किया गया। अप्कायिक अग्नि के प्रतिपक्ष रूप है अतः उसके बाद तेजस्कायिक का और वायु के सम्पर्क से अग्नि बढ़ती है इसलिए उसके बाद वायुकायिक का कथन किया गया है। दूर रही हुई वायु वृक्ष की शाखा आदि के कंपन से जानी जाती है अतः उसके बाद वनस्पतिकाय का ग्रहण किया गया है।
पृथ्वीकायिक जीव प्रज्ञापना से किं तं पुढवी काइया ? पुढवी काइया दुविहा पण्णत्ता। तंजहा-सुहुम पुढवी काइया य बायर पुढवी काइया य ॥१३॥
भावार्थ - प्रश्न - पृथ्वीकायिक कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
उत्तर - पृथ्वीकायिक दो प्रकार के कहे हैं, वे इस प्रकार हैं - १. सूक्ष्म पृथ्वीकायिक और २. बादर पृथ्वीकायिक।
विवेचन - सूक्ष्म नाम कर्म के उदय वाले पृथ्वीकायिक जीव सूक्ष्म पृथ्वीकायिक और बादर नाम कर्म के उदय वाले पृथ्वीकायिक जीव बादर पृथ्वीकायिक कहलाते हैं। यहाँ सूक्ष्मता और बादरता कर्म के उदय जन्य है। बेर और आंवले की तरह सूक्ष्मता और बादरता यहाँ नहीं समेझनी चाहिये।
उत्तराध्ययन सूत्र अ. ३६ में कहा है - 'सुहमा सव्व लोगंमि' - सूक्ष्म सर्वलोक में हैं तदनुसार सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव पूरे लोक में ठसाठस भरे हुए हैं। बादर पृथ्वीकायिक नियत नियत स्थानों पर लोकरकाश में होते हैं। जिनका वर्णन द्वितीय यद में किया जायेगा।
से किं तं सुहुम पुढवी काइया ? सुहुम पुढवी काइया दुविहा पण्णत्ता। तंजहापजत्त सुहुम पुढवी काइया य अपजत्त सुहुम पुढवी काइया य। से त्तं सुहुम पुढवी काइया ॥१४॥
भावार्थ - प्रश्न - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के कितने प्रकार कहे गये हैं? उत्तर - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक दो प्रकार के कहे गये हैं। वह इस प्रकार है-१. पर्याप्त सूक्ष्म
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