Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - तेजस्कायिक जीव प्रज्ञापना
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__ "विद्युत (बिजली) सचित्त अग्निकाय हैं" इस विषय में जिनागमों में निम्न उल्लेख मिलते हैं - १. श्री प्रज्ञापना के प्रथम पद में तेउकाय के वर्णन में संघर्ष से उत्पन्न होने वाले अग्नि और ऐसी ही अन्य अग्नियों का उल्लेख क्रमश: 'संघरिस समुट्ठिए' और 'जे यावण्णे तहप्पगारा' पदों से किया गया हैं। बिजली संघर्ष से उत्पन्न होती हैं। उपरोक्त आगम पाठ से इसका समावेश 'संघरिस समुट्ठिए' में होता है।
२. उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ३६ में बादर अग्निकाय के भेद में 'विजू' शब्द से बिजली को तेउकाय में स्वीकार की हैं।
३. अभिधान राजेन्द्र कोष में 'तेउकाय' शब्द की व्याख्या में निम्न ग्रन्थों के उद्धरण दिये हैं पिण्ड नियुक्ति, ओघनियुक्ति आवश्यक मलयगिरि, कल्प सुबोधिका, बृहत्कल्प वृति। इन ग्रन्थों में सचित्त. अचित्त और मिश्र तीन प्रकार की अग्नि बताई गई हैं। - सचित्त दो प्रकार की है-निश्चय और व्यवहार। निश्चय से सचित्त ईंट की भट्टी, कुम्हार की भट्टी आदि के मध्य की अग्नि और बिजली की अग्नि निश्चय सचित्त हैं। मिश्र तेजसकाय में मुर्मुर (चिनगारियां) आदि।
- अचित्त तेजस्काय में अग्नि द्वारा पके हुए भोजन, तरकारियां, पेय पदार्थ, अग्नि द्वारा तैयार की हुई लोहे की सूई आदि वस्तुएं और राख कोयला आदि अचित्त तेजस्काय हैं। अचित्त की नामावली में बिजली का नाम नहीं है।
४. श्री भगवती सूत्र श० ५ उ० २ के उल्लेख से स्पष्ट होता है कि केवल सचित्त अग्नि के मृत शरीरों को ही अचित्त अग्नि कहा गया हैं, बनावटी विद्युत आदि को नहीं।
५. श्री भगवती श० ७ उ० १० में अचित्त प्रकाशक तापक पुद्गल में केवल क्रोधाभिभूत साधु की तेजोलेश्या को लिया हैं। परन्तु बिजली को नहीं लिया। . ६. सूयगडांग के दूसरे श्रुतस्कन्ध के तीसरे अध्ययन में उल्लेख हैं कि त्रस और स्थावर प्राणियों के सचित्त और अचित्त शरीरों में पृथ्वी, पानी, तेउकाय आदि रूपों में जीव पूर्वकृत कर्म के उदय से उत्पन्न होते हैं। इससे सिद्ध होता है कि बेटरी, दियासलाई और तांबे के तारों में सचित्त तेजसं उत्पन्न हो सकती हैं। ... ७. लोगों से मालूम हुआ कि अग्नि की ही तरह बिजली से भी भोजन बनाया जाता हैं । ज्वालायें निकलती हैं, हवा गर्म होती हैं। जिस प्रकार कोयला, तेल आदि से अग्नि उत्पन्न कर मशीनें चलाई जाती हैं उसी प्रकार बिजली से भी मशीनें चलाई जाती है। बिजली मनुष्यों की मृत्यु का कारण भी बन जाती हैं। इससे बल्ब और पंखे भी गर्म हो जाते हैं। सभी प्रकार से देखा जाय, तो बिजली अग्नि का महापुंज हैं और साधारण अग्नि से भी महान् कार्य करने वाली हैं। इसे अचित्त फिर कैसे माना जाय?
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