Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
समझा जाता है। मुंगफली के सम्बन्ध में इस प्रकार समझना चाहिये - मुंगफली बीज रूप होने से जमीकन्द नहीं समझी जाती । कोई भी जमीकन्द सूखने के बाद अचित्त हो जाते हैं किन्तु मुंगफली सूखने के बाद भी एकजीवी रहती है। अनन्तकाय (जमीकन्द) का अर्थ ही यह है कि एक शरीर में अनन्त जीवों का होना। किसी भी अनन्तकाय के एक शरीर में एक जीव होता ही नहीं है मुंगफली के एक शरीर (दाने) में एक जीव होता है। अतः मुंगफली जमीकन्द नहीं है । इसी सूत्र के पहले पद में प्रत्येक की नेश्राय में भी निगोद (अनन्त जीवों) का उत्पन्न होना बताया है अत्यन्त कोमल अवस्था में अनन्त जीव भी पैदा हो सकते हैं। इसी प्रकार मुंगफली में भी दुध निकले ऐसी कच्ची अवस्था में अनन्त जीव पैदा हो सकते हैं। मुंगफली मूल (मौलिक रूप ) में तो प्रत्येक वनस्पति की जाति समझी जाती है इसकी नेश्राय में अनन्त जीव भी पैदा हो सकते हैं आगम में कहीं पर भी अनन्तकायिक वनस्पतियों में मुंगफली का उल्लेख नहीं हुआ है।
तणमूल कंदमूले, वंसीमूले त्ति यावरे ।
संखिज्जमसंखिज्जा, बोधव्वा अणंतजीवा य ॥ ८ ॥ सिंघाडगस्स गुच्छो, अणेग जीवो उ होइ णायव्वो । पत्ता पत्तेय जिया, दोण्णि य जीवा फले भणिया ॥ ९ ॥
भावार्थ - तृणमूल, कन्दमूल वंशीमूल ये और इसी प्रकार के दूसरे संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त जीव वाले जानना चाहिये। सिंघाडे का गुच्छ अनेक जीव वाला होता है और इसके पत्ते प्रत्येक जीव वाले होते हैं तथा इसके फल में दो-दो जीव कहे गये हैं ।
विवेचन - सिंघाडे का गुच्छ अनेक जीव वाला समझना चाहिये क्योंकि उसकी त्वचा और शाखाएँ आदि अनेक जीव वाली होती है। उसके पत्ते एक एक जीव वाले और उसके फल में दो दो जीव होते हैं ।
यहाँ पर कन्दमूल तृणमूल आदि बताये हैं वे वनस्पति विशेष हैं इनके मूल (जड़) संख्यात, असंख्यात, अनन्तजीवी होते हैं।
सिंघाड़क - अनन्त कायिक जीवों का वर्णन पूरा हो जाने के बाद प्रत्येक की नेश्राय में जो अनन्तकायिक उत्पन्न होते हैं उनका वर्णन बताते हुए सिंघाड़क के अमुक अवयव तो प्रत्येक जीवी होते हैं शेष अवयव लक्षणों के अनुसार संख्यात, असंख्यात, अनन्तजीवी भी हो सकते हैं। यह बताने के लिए बीच में सिंघाड़क का वर्णन आया है। सिंघाड़े के कच्ची अवस्था में तो अनन्तजीव भी रह सकते हैं यहाँ पर जो दो जीव बताये गये हैं वह परिपक्व अवस्था होने पर फल की अपेक्षा समझना चाहिये। एक जीव छाल का और दूसरा अन्दर के गिर (गर्भ) भाग का । इसलिए
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