Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इन उन्नीस प्रकार की वनस्पतियों की त्वचा, छल्ली (छाल) प्रवाल ( कोंपल), पत्र, पुष्प, फल, मूल अग्र, मध्य और बीज में से किसी की योनि कुछ और किसी की कुछ कही गयी है। यह साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक का स्वरूप हुआ। इस प्रकार बादर वनस्पतिकाय, वनस्पतिकाय और केन्द्रिय जीवों की प्ररूपणा की गयी है ।
प्रज्ञापना सूत्र
विवेचन - जहाँ एक बादर पर्याप्त जीव है वहाँ उसकी नेश्राय में कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त अपर्याप्त जीव होते हैं। प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव संख्यात या असंख्यात होते हैं किन्तु साधारण वनस्पतिकायिक तो नियम से अनन्त ही उत्पन्न होते हैं ।
बेइन्द्रिय जीव प्रज्ञापना
से किं तं बेइंदिया ? ( से किं तं बेइंदिय संसार समावण्ण जीव पण्णवणा ? बेइंदिय संसार समावण्ण जीव पण्णवणा) बेइंदिया अणेगविहा पण्णत्ता । तंजहा पुलाकिमिया, कुच्छिकिमिया, गंडूयलगा, गोलोमा, णेउरा, सोमंगलगा, वंसीमुहा, सुईमुहा, गोजलोया, जलोया, जालाउया (जलोउया), संखा संखणगा, घुल्ला, खुल्ला, गुलया, खंधा, वराडा, सोत्तिया, मुत्तिया, कलुया, वासा, एगओवत्ता दुहओवत्ता, णंदियावत्ता, संबुक्का, माइवाहा, सिप्पिसंपुडा, चंदणा, समुद्दलिक्खा, जे यावणे तप्पगारा । सव्वे ते संमुच्छिमा णपुंसगा । ते समासओ दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । एएसि णं एवमाइयाणं बेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं संत्त जाइकुलकोडि-जोणीप्पमुहसयसहस्सा भवंती ति मक्खायं । से तं बेइंदिय संसार समावण्ण जीव पण्णवणा ॥ ४४ ॥
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कठिन शब्दार्थ- पुलाकिमिया पुलाकृमिक - मलद्वार में उत्पन्न होने वाले कृमि (कीड़ा), कुच्छिकमिया - कुक्षिकृमिक - उदर में उत्पन्न होने वाले कृमि (कीड़ा), संखणगा - शंखनक - छोटे शंख, चंदणा - चंदनक - अक्ष, गंडूयलगा - गिंडोला, संवुक्का शम्बूक- घोंघा, घुल्ला - घोंघरी, सिप्पिसंपुटा संपुटाकार सीप, जलोया - जौंक ।
भावार्थ -
उत्तर
- प्रश्न - बेइन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? बेइन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं । इस प्रकार हैं पुलाकृमिक, कुक्षिकृमिक, गण्डूयलग, गोलोम, नूपर, सौमंगलक, वंशीमुख, सूचीमुख, गोजलौका, जलौका, जलायुका(जलोयुक), शंख, शंखनक, घुल्ल, खुल्ला, गुडज, स्कन्ध, वराटा (कोडा) सौक्तिक (सौत्रिक), मौक्तिक ( मूत्रिक) कलुकावास, एकतोवृत (एकत आवर्त) द्विधातोवृत ( द्विधाआवर्त ) नन्दिकावर्त्त
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