Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - पंचेन्द्रिय जीव प्रज्ञापना
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युग मत्स्य, विज्झडिय मत्स्य, हलि मत्स्य, मकरी मत्स्य, रोहित मत्स्य, हलीसागर, गागर, वट, वटकर, गर्भज, उसगार, तिमि, तिमिगिल, नक्र, तन्दुल मत्स्य, कणिक्का मत्स्य, शाली, शस्त्रिक मत्स्य, लंभनमत्स्य, पताका, पताकातिपताका। इसी प्रकार के अन्य जो प्राणी हैं उन्हें मत्स्य समझना चाहिये। इस प्रकार मत्स्यों का वर्णन हुआ।
प्रश्न - कच्छप कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - कच्छप दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - अस्थि कच्छप (जिनके शरीर में हड्डियाँ अधिक हो) और मांस कच्छप (जिनके शरीर में मांस अधिक हो)। इस प्रकार कच्छप का वर्णन हुआ।
प्रश्न - ग्राह कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - ग्राह पांच प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. दिली २. वेढग (वेष्टक) ३. मूर्धज ४. पुलक और ५. सीमाकार। इस प्रकार ग्राह कहे गये हैं।
प्रश्न - मगर कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - मगर (मगरमच्छ) दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं - शोण्ड मगर और मट्ठ (मृष्ट) मगर। इस प्रकार मगर कहे गय हैं। .. प्रश्न - सुंसुमार (शिशुमार) कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर-सुंसुमार (शिशुमार) एक ही आकार प्रकार के कहे गये हैं। इस प्रकार सुंसुमार कहे गये हैं।
अन्य जो इस प्रकार के हों। वे संक्षेप में दो प्रकार के हैं - सम्मूर्छिम और गर्भव्युत्क्रान्तिक (गर्भज)। इनमें से जो सम्मूर्छिम हैं वे सब नपुंसक हैं और जो गर्भ व्युत्क्रान्तिक हैं वे तीन प्रकार के कहे गये हैं - स्त्री, पुरुष और नपुंसक। इस प्रकार पर्याप्त और अपर्याप्त जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों के साढ़े बारह लाख जाति कुल कोटि-योनि प्रमुख होते हैं। तीर्थंकर भगवन्तों ने इस प्रकार कहा है। इस प्रकार जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कहे गये हैं।
विवेचन - प्रश्न - तिर्यंच योनिक किसे कहते हैं ?
उत्तर - जो तिर्यंच गति में जन्म लेते हैं, उन्हें तिर्यंच कहते हैं। गति की अपेक्षा वे तिर्यंच गति के जीव हैं और उत्पत्ति की अपेक्षा वे तिर्यंच योनिक कहलाते हैं। क्योंकि योनि का अर्थ है उत्पत्ति का स्थान। टीकाकार ने तिर्यंच शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है- संस्कृत में 'अञ्च गति पूजनयोः' धातु है। उससे तिर्यंच शब्द बनता है "तिरः वक्रं अञ्चति गच्छति इति तिर्यक् बहुवचने तिर्यञ्चः" शब्दार्थ यह है कि जो टेड़े मेड़े चलते हैं वे तिर्यंच कहलाते हैं। यह केवल शब्दार्थ मात्र है। रूढ अर्थ तो ऊपर बतला दिया है कि - जो तिर्यंच गति में जन्म लेते हैं वे तिर्यंच कहलाते हैं।
प्रश्न - सम्मूर्छिम किसे कहते हैं ?
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