Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - वनस्पतिकायिक जीव प्रपना
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कंबू य कण्णूक्कड महुओ, वलई तहेव महुसिंगी। णीरुहा सप्पसुयंधा, छिण्णरुहा चेव बीयरुहा॥३॥ पाढा मियवालुंकी, महुररसा चेव रायवल्ली य। प्रउमा य माढरी दंती, चंडी किट्टि त्ति यावरा॥४॥ मासपण्णी मुग्गपण्णी, जीविय रसहे य रेणुया चेव। काओली खीरकाओली, तहा भंगी णही इ य॥५॥ किमिरासि भद्दमुत्था, णंगलई पेलुगा ( पलुगा) इय। किण्हे पउले य हढे, हरतणुया चेव लोयाणी॥६॥ कण्हकंदे वजे, सूरणकंदे तहेव खल्लुडे। एए अणंत जीवा, जे यावण्णे तहाविहा॥७॥ भावार्थ - प्रश्न - साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं-अवक, पनक, शैवाल, लोहिणी-रोहिणी, स्निहपुष्प, मिहु, स्तिहू हस्तिभाग् और अश्वकर्णी, सिंहकर्णी सिउण्डी (शितुण्डी) और मुसुंढी॥१॥
रुरु, कण्डुरिका (कुंडरिका) जीरु, क्षीरविदारिका, किट्टि, हरिद्रा (हल्दी), श्रृंगबेर (आदा या अदरक) आलू एवं मूला॥२॥
कम्बू, कर्णोत्कट, मधुक, वलकी तथा मधुश्रृंगी, नीरुह, सर्प सुगंधा, छिन्नरुह और बीजरुह ॥३॥
पांढा, मृगवालुंकी, मधुररसा और राजपत्री, पद्मा, माढरी, दंती, इसी प्रकार चण्डी, किट्टी (कृष्टि )॥४॥
माषपर्णी, मुद्गपर्णी, जीवित, रसभेद और रेणुका, काकोली (काचोली), क्षीरकाकोली और भुंगी, नखी॥५॥ ___ कृमिराशि, भद्रमुस्ता, नांगलकी, पलुका, इसी प्रकार कृष्ण प्रकुल, हड (हढ), हरतनुका, लोयाणी ॥६॥
कृष्णकंद, वज्रकन्द, सूरणकन्द तथा खल्लुर-ये अनन्त जीव वाले हैं। इसके अलावा और जितने भी इसी प्रकार के हैं वे सभी अनन्त जीवात्मक हैं।
विवेचन - उपर्युक्त नामों में 'मुद्गपर्णी' नाम आया है। यह एक अप्रसिद्ध साधारण वनस्पति है, मुंगफली से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। मुंगफली को तो प्रत्येक वनस्पति के गुच्छ नाम के अन्तर्गत
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