Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - वनस्पतिकायिक जीव प्रज्ञापना
७३
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गीले सिंघाड़े को जमीकन्द नहीं समझना चाहिये। अत्यन्त कच्ची अवस्था में इसमें भी प्रत्येक की नेश्राय में अनन्त जीव पैदा हो सकते हैं।
जस्स मूलस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसइ। अणंत जीवे उसे मूले, जे यावण्णे तहाविहा॥१०॥ जस्स कंदस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसइ। अणंत जीवे उ से कंदे, जे यावण्णे तहाविहा॥११॥ जस्स खंधस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसइ। अणंत जीवे उसे खंधे, जे यावण्णे तहाविहा॥१२॥ जीसे तयाए भग्गाए, समो भंगो पदीसइ। अणंत जीवा उ सा तया, जे यावण्णे तहाविहा॥१३॥ जस्स सालस्स भंग्गस्स समो भंगो पदीसइ। अणंत जीवे उ से साले, जे यावण्णे तहाविहा॥१४॥ जस्स पवालस्स भग्मस्स समो भंगो पदीसइ। अणंत जीवे पवाले से, जे यावण्णे तहाविहा॥१५॥ जस्स पत्तस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसइ। अणंत जीवे उसे पत्ते, जे यावण्णे तहाविहा॥१६॥ जस्स पुष्फस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसइ। अणंत जीवे उ से पुप्फे, जे यावण्णे तहाविहा॥१७॥ .. जस्स फलस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसइ। अणंत जीवे उ से फले, जे यावण्णे तहाविहा॥१८॥ जस्स बीयस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसइ। . अणंत जीवे उसे बीए, जे यावण्णे तहाविहा॥१९॥
कठिन शब्दार्थ - मूलस्स - मूल का, भग्गस्स - भंग करने पर, समो - समान, भंगो - भंग, पदीसइ - दिखाई देता है।
भावार्थ - जिस मूल को भंग करने (तोड़ने) पर समान भंग दिखाई दे वह मूल अनन्त जीव वाला है। इसी प्रकार के दूसरे जितने भी मूल हैं उन्हें भी अनन्त जीव वाले समझना चाहिये॥१०॥
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