Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
जिस कंद को भंग करने पर समान भंग दिखाई दे वह कंद अनन्त जीव वाला है। इसी प्रकार के दूसरे जितने भी कंद हैं उन्हें अनन्त जीव वाले समझना चाहिये ॥ ११ ॥
जिस स्कंध को भंग करने पर समान भंग दिखाई दे वह स्कन्ध अनन्त जीव वाला है। इसी प्रकार के दूसरे स्कंधों को भी अनन्त जीव वाले समझना चाहिये ॥ १२ ॥
जिस त्वचा को भंग करने पर समान भंग दिखाई दे वह त्वचा अनन्त जीव वाली है। इसी प्रकार की अन्य त्वचा भी अनंत जीव वाली समझनी चाहिये ॥ १३ ॥
जिस शाखा को भंग करने पर समान भंग दिखाई दे वह शाखा अनंत जीव वाली है। इसी प्रकार की अन्य शाखा भी अनंत जीव वाली समझनी चाहिये ॥ १४ ॥
जिस प्रवाल ( कोंपल) को भंग करने पर समान भंग दिखाई दे वह प्रवाल अनन्त जीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी प्रवाल हैं, उन्हें भी अनंत जीव वाले समझना चाहिये ॥ १५ ॥
जिस पत्ते का भंग करने (तोड़ने ) पर समान भंग दिखाई दे वह पत्ता अनन्त जीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी पत्र हैं, उन्हें अनन्त जीव वाले समझने चाहिये ।। १६ ॥
जिस फूल को भंग करने पर समान भंग दिखाई दे वह फूल अनन्त जीव वाला है। इसी प्रकार अन्य जितने भी फूल हों उन्हें, अनंत जीव वाले समझने चाहिये ॥ १७॥
जिस फल को तोड़ने पर समान भंग दिखाई दे वह फल अनन्त जीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी फल हैं, उन्हें अनन्त जीव वाले समझने चाहिये ॥ १८ ॥
जिस बीज को भंग करने पर समान भंग दिखाई दे वह बीज अनंत जीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी बीज हैं, उन्हें अनन्त जीव वाले समझने चाहिये । । १९॥
विवेचन - उपरोक्त गाथाओं में अनन्तकायिक वनस्पति का लक्षण बताया गया है। जिस वनस्पति के मूल को भंग करने (तोड़ने ) पर समभंग हो अर्थात् एकान्त समान चक्र के आकार वाला भंग स्पष्ट दिखाई दे वह मूल अनंत जीवात्मक जानना चाहिए। इसी प्रकार कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प और बीज के विषय में भी समझना चाहिये ।
जस्स मूलस्स भग्गस्स, हीरो भंगो पदीसइ ।
परित्त जीवे उसे मूले, जे यावण्णे तहाविहा ॥ २० ॥ जस्स कंदस्स भग्गस्स, हीरो भंगो पदीसइ । परित्त जीवे उसे कंदे, जे यावण्णे तहाविहा ॥ २१ ॥ जस्स खंधस्स भग्गस्स, हीरो भंगो पदीसइ । परित्त जीवे उ से खंधे, जे यावण्णे तहाविहा ॥ २२ ॥
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