Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - वनस्पतिकायिक जीव प्रज्ञापना
६३
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से किं तं गुच्छा ? गुच्छा अणेगविहा पण्णत्ता। तंजहा - वाइंगण (वाइंगणि) सल्लइ बोंडई (धुंडई) य तह कच्छुरी य जासुमणा। रूवी आढइ णीली तुलसी तह माउलिंगी य॥१॥ कत्थंभरि पिप्पलिया अयसी बिल्ली (वल्ली) य कायमाई या। चुच्चु पडोल कंदलि बाउच्चा वत्थुले बयरे॥२॥ पत्तउर सीयउरए हवइ तहा जवसए य बोद्धव्वे। णिग्गुंडिय कत्तुंबरि (णिग्गुंडि अक्क तूवरि ) अत्थई चेव तलऊडा॥३॥ सण-पाण (वाण) कास मुद्दग-अग्घाडग-साम-सिंदुवारे य। करमद्द-अहरुसग-करीर-एरावण-महित्थे॥४॥ जाउलग-माल-परिली-गयमारिणी-कुच्च कारिया भंडी। जावइ केयइ तह गंज पाडला दासि-अंकोल्ले॥५॥ जे यावण्णे तहप्पगारा।से तं गुच्छा॥३४॥ भावार्थ - प्रश्न - गुच्छ कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर- गच्छ अनेक प्रकार के कहे गये हैं. वे इस प्रकार हैं -
वाइंगिणी (बैंगन), सल्लकी, धुंडकी, कच्छुरी (कवच), जासुमना, रूपी, आढकी, नीली, तुलसी और मातुलिंगी॥१॥ - कुस्तुंभरी, पिप्पलिका, अलसी, वल्ली (बिल्वी), कायमादिका, चुच्चु (वुच्चु) पटोलकंदलि, विउव्वा (विकुर्वा), वत्थुल (बस्तुल), बदर ॥२॥
पत्रपूर, शीतपूर, जवसक, निर्गुडी, कस्तुंबरि, अत्थई (अस्तकी) और तलउडा (तलपुटा) ॥३॥
शण, पाण, काशमुद्रक, अघ्रातक, श्याम, सिन्दुबार और करमर्द (लोक प्रसिद्ध करमदा) आर्द्रडूसक (अडूसा) करीर (कैर) एरावण तथा महित्थ ॥ ४॥
जातुलक, मालग, परिली, गजमारिणी, कुर्व्वकारिका, भंडी जीवकी (जीवंती) केतकी, गंज, पाटला, दासी और अंकोल्ल।
इसी प्रकार की अन्य जो वनस्पति हैं वे सभी गुच्छ समझनी चाहिये। इस प्रकार गुच्छ कहे गये हैं।
विवेचन - इनमें कितनेक गुच्छ प्रसिद्ध हैं और कितनेक अप्रसिद्ध हैं। किसी देश विशेष में प्रसिद्ध भी हो सकते हैं।
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