Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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६२
प्रज्ञापना सूत्र
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से किं तं बहुबीयगा ? बहुबीयगा अणेगविहा पण्णत्ता। तंजहा - अस्थिय-तिंदु-कविढे अंबाडग-माउलिंग बिल्ले य। आमलग फणस दाडिम आसोत्थे उंबर वडे य॥१॥ णग्गोह णंदिरुक्खे पिप्परी सयरी पिलुक्ख रुक्खे य। काउंबरि कुत्धुंभरि बोद्धव्वा देवदाली य॥२॥ तिलए लउए छत्तोह-सिरीसे सत्तवण्ण दहिवण्णे। लोद्ध धव चंदण अज्जुण णीमे कुडए कयंबे य॥३॥
जे यावण्णे तहप्पगारा। एएसि णं मूला वि असंखिज जीविया, कंदा वि, खंधा वि, तया वि, साला वि, पवाला वि। पत्ता पत्तेय जीविया। पुप्फा अणेग जीविया। फला बहुबीयगा। से तं बहुबीयगा। से तं रुक्खा॥३३॥
भावार्थ - प्रश्न - बहुबीजक वृक्ष कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - बहुबीजक वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं -
अस्थिक, तेंदुक (टींबरु), कपित्थक (कोठा), अम्बाडग, मातुलिंग (बिजौरा), बिल्व (बीला) आमलक (आंवला), पनस (अनन्नास), दाडिम (अनार), अश्वत्थ (पीपल), उदुम्बर (गुल्लर), वट (बड)॥ १॥ न्यग्रोध (बडा वट), नंदिवृक्ष, पिप्पली (पीपल), शतरी (शतावरी), प्लक्ष वृक्ष, कादुम्बरी, कुस्तुंबरि और देवदाली॥ २॥ तिलक, लकुच, छत्रौघ, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्र, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कुटज और कदम्ब ॥३॥
इसी प्रकार के अन्य जितने भी वृक्ष हैं वे सब बहुबीजक वृक्ष समझने चाहिये। इनके मूल, कंद, स्कंध, त्वचा, शाखा और प्रवाल असंख्यात जीवों वाले होते हैं। किन्तु इनके पते प्रत्येक जीव वाले और पुष्प अनेक जीव वाले होते हैं तथा फल बहुत बीज वाले होते हैं। इस प्रकार बहुबीजक वृक्षों का वर्णन हुआ। इस प्रकार वृक्ष कहे गये हैं।
विवेचन - इन बहुबीजक वृक्षों में से कितनेक प्रसिद्ध हैं और कितनेक अप्रसिद्ध हैं। किसी देश विशेष में प्रसिद्ध भी हो सकते हैं। यहाँ पर आमलक शब्द का अर्थ टीका में प्रसिद्ध आंवला नहीं समझना ऐसा कहा है जिसके लिए एक बीज होने का हेतु दिया गया है परन्तु वस्तुत: ऐसी स्थिति नहीं है। लोक प्रसिद्ध आमलक, बोर आदि एक गुठली वाले और अनेक बीज वाले होते हैं अर्थात् आमलक के जितने फांके होती है उसकी गुठली में उतने ही बीज होते हैं इसी प्रकार अम्बाडग को भी समझना अर्थात् यह सब लोक प्रसिद्ध ही समझना।
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