Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - वनस्पतिकायिक जीव प्रज्ञापना
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उत्तर - सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और २. अपर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक। इस प्रकार सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव कहे गये हैं।
से किं तं बायर वणस्सइकाइया? बायर वणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता। तंजहा-पत्तेयसरीर बायर वणस्सइकाइया य साहारणसरीर बायर वणस्सइकाइया य॥२९॥
भावार्थ - प्रश्न - बादर वनस्पतिकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? .
उत्तर - बादर वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं- १. प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक और २. साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक।
विवेचन - प्रश्न - प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक किसे कहते हैं ?
उत्तर - 'एकं एक जीवं प्रति गतं प्रत्येकं प्रत्येकं शरीरं येषां ते प्रत्येकशरीराः।' - एक एक जीव को प्राप्त शरीर प्रत्येक शरीर कहलाता है। जिन वनस्पतिकायिक जीवों का प्रत्येक शरीर है अर्थात् एक-एक जीव का एक-एक औदारिक शरीर भिन्न-भिन्न है। वे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव कहलाते हैं।
प्रश्न - साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव किसे कहते हैं ?
उत्तर - 'समानं-तुल्यं प्राणापानादि उपभोगं यथा भवति एवम् आ-समन्तात् एकीभावेन अनन्तानां जन्तूनां धारणं-संग्रहणं येन तत्साधारणं, साधारणं शरीरं येषां ते साधारणशरीराः' - श्वासोच्छ्वास आदि का उपभोग समान रूप से होता है इस प्रकार अनंतजीवों द्वारा जो शरीर धारण किया जाता है उसे साधारण शरीर कहते हैं। जिन वनस्पतिकायिक जीवों का साधारण शरीर है वे साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव कहलाते हैं। इनका औदारिक शरीर एक होता है। तैजस
और कार्मण शरीर सबका भिन्न-भिन्न होता है। इन अनंत ही जीवों का जन्म, श्वासोच्छ्वास और मरण एक साथ होता है।
से किं तं पत्तेय सरीर बायर वणस्सइ काइया ? पत्तेय सरीर बायर वणस्सइ काइया दुवालस विहा पण्णत्ता। तंजहा -
१ रुक्खा २ गुच्छा ३ गुम्मा ४ लया य ५ वल्ली य ६ पव्वगा चेव। ७ तण ८ वलय ९ हरिय १० ओसहि ११ जलरुह १२ कुहणा य बोद्धव्वा॥३०॥
कठिन शब्दार्थ - रुक्खा - वृक्ष, गुच्छा - गुच्छ, गुम्मा - गुल्म, लया - लता, वल्ली - वल्ली, पव्वगा - पर्वग, तण - तृण, ओसहि - औषधि, कुहणा - कुहण।
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