Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - तेजस्कायिक जीव प्रज्ञापना
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उत्तर - बादर अप्कायिक अनेक प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - ओस, हिम (बर्फ) महिका (धुम्मस या कोहरा, गर्भमासों में होने वाली सूक्ष्म वर्षा) ओले, हरतनु (वनस्पति के ऊपर की जल बिन्दु) शुद्धोदक (आकाश से गिरा हुआ अथवा नदी आदि का पानी) शीतोदक - नदी तालाब, कुआँ, बावड़ी आदि का शीत स्पर्श परिणत जल। उष्णोदक - कहीं झरने आदि से स्वाभाविक रूप से उष्ण स्पर्श परिणत जल। क्षारोदक - कुछ खारा स्वभाव वाला पानी जैसे लाट देश आदि के कुछ कुएं का पानी। खटोदक (कन्छ खटा पानी) अम्लोदक (स्वाभाविक रूप से खदा पानी जैसे कांजी आदि का पानी) लवणोदक - विशेष खारा पानी कड़वे जैसा तद्योनिक जीवों के सिवाय शेष जीवों के अपेय। वारुणोदक (वरुण समुद्र का पानी-मदिरा जैसे स्वाद वाला जल) क्षीरोदक (क्षीर समुद्र का पानी) घृतोदक (घृतवर समुद्र का पानी) क्षोदोद (इक्षु समुद्र का पानी) रसोदक - उत्सर्पिणी के दूसरे आरे के प्रारम्भ में बरसने वाले रस मेघ का जल। ये तथा इसके अलावा और भी रस स्पर्श आदि के भेद से जितने भी प्रकार हों, वे सब बादर अप्कायिक समझने चाहिये। वे संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त। उनमें से जो अपर्याप्त हैं वे असम्प्राप्त (अपनी पर्याप्तियों को पूर्ण नहीं कर पाए हैं या विशिष्ट वर्णादि को प्राप्त नहीं हुए हैं) उनमें से जो पर्याप्त हैं उनके वर्णादेश, गंधादेश, रसादेश और स्पर्शादेश से हजारों भेद होते हैं और संख्यात लाख योनिद्वार-योनि प्रमुख हैं। पर्याप्त जीवों के आश्रय से अपर्याप्त उत्पन्न होते हैं। जहाँ एक पर्याप्त है वहाँ नियम से असंख्यात अपर्याप्त होते हैं। इस प्रकार बादर अप्कायिकों का वर्णन कहा गया है। इस प्रकार अप्कायिक जीवों का वर्णन हुआ। ___टीकाकार 'जे यावन्ने तहप्पगारा' में 'घओदए' आदि का ग्रहण करते हैं। अतः टीका युग के बाद मूलपाठ में घओदए' शब्द प्रक्षिप्त होना संभव है। अत: मूलपाठ में 'खीरोदए' के बाद 'खोओदए' पाठ होमा चाहिए। .. विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बादर अप्कायिक जीवों के भेद प्रभेदों की प्ररूपणा की गयी है।
तेजस्कायिक जीव प्रज्ञापना से किं तं तेउक्काइया? तेउक्काइया दुविहा पण्णत्ता। तंजहा-सुहुम तेउक्काइया य बादर तेउक्काइया य॥२१॥
भावार्थ - प्रश्न - तेजस्कायिक कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. सूक्ष्म तेजस्कायिक और २..बादर तेजस्कायिक।
से किं तं सुहम तेउक्काइया? सुहम तेउक्काइया दुविहा पण्णत्ता। तंजहापजत्तगा य अपजत्तगा य। से तं सुहुम तेउक्काइया॥२२॥
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