Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
जे संठाणओ तंस संठाण परिणता, ते वण्णओ काल वण्ण परिणता वि, णील वण्ण परिणता वि, लोहिय वण्ण परिणता वि, हालिद्द वण्ण परिणता वि, सुक्किल वण्ण परिणता वि, गंधओ सुब्भि गंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि, रसओ तित्त रस परिणता वि, कडुय रस परिणता वि, कसाय रस परिणता वि, अंबिल रस परिणता वि, महुर रस परिणता वि, फासओ कक्खड फास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फास परिणता वि, लहुय फास परिणता वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लुक्ख फास परिणता वि २०।
भावार्थ - जो संस्थान से त्र्यस्र संस्थान परिणत होते हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण आदि पांच वर्ण रूप, गंध से दोनों सुगंध और दुर्गन्ध रूप, रस से तिक्त कटु आदि पांचों रसों रूप, स्पर्श से आठों ही स्पर्शों रूप परिणत होते हैं २० ।
जे संठाणओ चउरंस संठाण परिणता ते वण्णओ काल वण्ण परिणता वि, णील वण्ण परिणता वि, लोहिय वण्ण परिणता वि, हालिद्द वण्ण परिणता वि, सुक्किल वण्ण परिणता वि, गंधओ सुब्भि गंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि, रसओ तित्त रस परिणता वि, कडुय रस परिणता वि, कसाय रस परिणता वि, अंबिल रस परिणता वि, महुर रस परिणता वि, फासओं कक्खड फास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फास परिणता वि, लहुय फास परिणता वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लुक्ख फास परिणता वि २०।
भावार्थ - जो संस्थान से चतुरस्रसंस्थान परिणत होते हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण आदि पांच वर्ण रूप, गंध से दोनों सुगंध और दुर्गन्ध रूप, रस से तिक्त कटु आदि पांचों रसों रूप, स्पर्श से आठों ही स्पर्शों रूप परिणत होते हैं २०।।
जे संठाणओ आयय संठाण परिणता, ते वण्णओ काल वण्ण परिणता वि, णील वण्ण परिणता वि, लोहिय वण्ण परिणता वि, हालिद्द वण्ण परिणता वि, सुक्किल वण्ण परिणता वि, गंधओ सुब्भि गंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि, रसओ तित्त रस परिणता वि कडुय रस परिणता वि कसाय रस परिणता वि, अंबिल रस
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