Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
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वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लुक्ख फास. परिणता वि। संठाणओ परिमंडल संठाण परिणता वि, वट्ट संठाण परिणता वि, तंस संठाण परिणता वि, चउरंस संठाण परिणता वि, आयय संठाण परिणता वि २३, ४६ ।
भावार्थ- जो गंध से दुरभि गंध रूप परिणत है वह वर्ण से कृष्ण वर्ण रूप, नील, लोहित, हारिद्र और शुक्ल वर्ण रूप परिणत होता है। रस से तीखा, कडवा, कषायला, खट्टा और मधुर रस रूप परिणत होता है। स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श रूप परिणत होता है। संस्थान से परिमंडल, वृत्त, त्र्यस्त्र, चतुरस्र और आयत संस्थान रूप भी परिणत होता है।
विवेचन - जो गंध से सुरभि गंध रूप परिणाम वाले होते हैं वे वर्ण से काले वर्ण के परिणाम वाले, नील वर्ण के परिणाम वाले, लाल वर्ण के परिणाम वाले, पीले वर्ण के परिणाम वाले और शुक्ल वर्ण के परिणाम वाले भी होते हैं। वर्ण के ये कुल ५, इसी प्रकार ५ रस के, ८ आठ स्पर्श के और ५ संस्थान के ये कुल मिला कर २३ भेद होते हैं। यानी सुरभि गंध रूप परिणत हुए स्कंध के २३ भंग होते हैं। इसी प्रकार दुरभिगंध रूप परिणत स्कन्ध के २३ भंग होते हैं। कुल मिला कर गंध के ४६ भंग होते हैं।
जे रसओ तित्त रस परिणता ते वण्णओ कालवण्ण परिणता वि, णील वण्ण परिणता वि, लोहिय वण्ण परिणता वि, हालिद्द वण्ण परिणता वि, सुक्किल्ल वण्ण परिणता वि । गंधओ सुब्भि गंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि । फासओ कक्खड फास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फास परिणता वि, लहुय फास परिणता वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लुक्ख फास परिणता वि। संठाणओ परिमंडल संठाण परिणता वि, वट्ट संठाण परिणता वि, तंस संठाण परिणता वि, चउरंस संठाण परिणता वि, आयय संठाण परिणता वि २० ।
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भावार्थ - जो रस तिक्त रस परिणत होते हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण परिणत भी होते हैं, नील वर्ण परिणत भी होते हैं, रक्त वर्ण परिणत भी होते हैं, पीत वर्ण परिणत भी होते हैं और शुक्ल वर्ण परिणत भी होते हैं। गंध से वे सुगंध परिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध परिणत भी होते हैं। स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध होते हैं और रूक्ष स्पर्श परिणत भी । संस्थान से परिमंडल, वृत्त, त्र्यस्त्र, चतुरस्र संस्थान परिणत भी होते हैं और आयत संस्थान परिणत भी होते हैं २० ।
जे रसओ कडु रस परिणता ते वण्णओ काल वण्ण परिणता वि, णील वण्ण
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