Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - रूपी अजीव प्रज्ञापना
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कोई दुरभि गंध रूप परिणत है। रस से कोई तिक्त ( तीखा ) रस रूप, कोई कटु रस रूप, कोई कषाय रस रूप, कोई अम्ल (खट्टा ) रस रूप और कोई मधुर रस रूप परिणत है। स्पर्श से कोई कर्कश स्पर्श रूप, मृदु-कोमल स्पर्श रूप, गुरु स्पर्श रूप, लघु स्पर्श रूप, शीत स्पर्श रूप, उष्ण स्पर्श रूप, स्निग्ध स्पर्श रूप और रूक्ष स्पर्श रूप परिणत है। संस्थान से परिमंडल संस्थान रूप, वृत्त संस्थान रूप, त्रिकोण संस्थान रूप, चतुष्कोण संस्थान रूप और आयत संस्थान रूप परिणत है।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में वर्णादि का परस्पर का बंध कहा है। जो वर्ण से काला वर्ण परिणत है वह गंध से सुरभि गंध और दुरभि गंध रूप भी परिणत होता है तात्पर्य यह है कि गंध की अपेक्षा विकल्प से कोई सुरभि गन्ध रूप परिणत होता है और कोई दुरभि गंध रूप परिणत होता है परन्तु अमुक एक ही गंध रूप परिणत नहीं होता। इसी प्रकार रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा भंग कहना चाहिए। उनमें दो गंध, पांच रस, आठ स्पर्श और पांच संस्थान में सभी मिला कर २० भंग काले वर्ण रूप, परिणत स्कंध में होते हैं। इसी प्रकार नील वर्ण रूप परिणत, रक्त वर्ण रूप परिणत, पीत (पीला) वर्ण रूप परिणत और शुक्ल वर्ण रूप परिणत स्कन्धों के २० - २० भंग होते हैं। इस प्रकार पांचों वर्णों के कुल १०० भंग होते हैं।
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जेवणओ णील वण्ण परिणता ते गंधओ सुब्भि गंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि । रसओ तित्त रस परिणता वि, कडुय रस परिणता वि, कसाय रस परिणता वि, अंबिल रस परिणता वि, महुर रस परिणता वि । फासओ कक्खड फास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फासपरिणया वि, लहुय फास परिणता वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लक्ख फास परिणता वि। संठाणओ परिमंडल संठाण परिणता वि, वट्ट संठाण परिणता वि, तंस संठाण परिणता वि, चउरंस संठाण परिणता वि, आयय संठाणपरिणया वि २० ।
भावार्थ - जो वर्ण से नील वर्ण रूप परिणत है वह गंध से सुरभि गंध रूप और दुरभि गंध रूप भी परिणत होता है। रस से तीखा, कडुवा, कषायला, खट्टा और मीठा रस रूप भी परिणत होता है । स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष रूप भी परिणत होता है। संस्थान से परिमंडल, वृत्त, त्र्यस्र-त्रिकोण, चतुरस्र (चतुष्कोण) और आयत संस्थान रूप भी परिणत होता है।
जे वण्णओ लोहिय वण्ण परिणता ते गंधओ सुब्धि गंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि । रसओ तित्त रस परिणता वि, कडुय रस परिणता वि, कसाय रस परिणता वि, अंबिल रस परिणता वि, महुर रस परिणता वि । फासओ कक्खड फास
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