Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
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"परिमंडले य वट्टे तंसे चउरंस आयए चेव। घण पयर पढमवजं ओजपएसे य जुम्मे य॥ पंचग बारसगं खलु सत्तगबत्तीसगं च वट्टम्मि। तिग छक्क पणगतीसा चत्तारि य होंति तंसंमि॥ नव चेव तहा चउरो सत्तावीसा य अट्ट चउरंसे। तिग-युग-पन्नरसेव य छच्चेव य आयए होंति॥ पणयाला बारसगं तह चेव य आययंमि संठाणे। वीसा चत्तालीसा परिमंडलए य संठाणे॥"
अर्थ - परिमण्डल, वृत्त, त्र्यस्र (त्रिकोण), चतुरस्र (चतुष्कोण) और आयत-ये पांच संस्थान हैं जिसके घन और प्रतर दो भेद हैं। उसके प्रथम परिमंडल के सिवाय प्रत्येक के ओजः प्रदेश जनितएकी की संख्या वाले प्रदेशों से उत्पन्न और युग्म प्रदेश जनित-बेकी की संख्या वाले प्रदेशों से उत्पन्न ऐसे दो भेद हैं । वृत संस्थान के ५, १२, ७ और ३२ प्रदेश है। त्र्यस्र संस्थान में ३, ६, ३५, और ४ प्रदेश हैं। चतुरस्र संस्थान में ९, ४, २७ और आठ प्रदेश है। आयत • संस्थान में ३, २, १५ और ६ तथा ४५ और १२ प्रदेश हैं । २० और ४० प्रदेश परिमंडल संस्थान के हैं।
जे वण्णओ कालवण्णपरिणता ते गंधओ सुब्भि गंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि। रसओ तित्त रस परिणता वि, कडुय रस परिणता वि, कसाय रस परिणता वि, अंबिल रस परिणता वि, महुर रस परिणता वि। फासओ कक्खड फास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फास परिणता वि, लहुय फास परिणता वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लुक्ख फास परिणता वि। संठाणओ परिमंडल संठाण परिणता वि, वट्ट संठाण परिणता वि, तंस संठाण परिणता वि, चउरंस संठाण परिणता वि, आयय संठाण परिणता वि २०॥
भावार्थ - जो वर्ण से काले वर्ण रूप परिणत है उनमें से कोई गंध से सुरभि गन्ध रूप परिणत है
.आयत संस्थान के श्रेण्यायत (श्रेणी आयत), प्रतरायत (प्रतर आयत) और घनायत (घन आयत) ये तीन भेद होते हैं और प्रत्येक के ओजः प्रदेश जनित और युग्म प्रदेश जनित ऐसे दो भेद मिल कर आयत संस्थान के छह भेद होते हैं।
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