________________
ग्रन्थ का नाम
गुणभद्र कृत उत्तरपुराण 9वीं सदी
पुष्पदन्त कृत महापुराण (तिसट्ठि) 9वीं सदी
वादिराजसूरि कृत पार्श्व 10वीं सदी
हेमचन्द्रकृत त्रिषष्टि. 13वीं सदी
देवभद्रसूरिकृत, सिरिपास. कुलिशबाहु
12वीं सदी
पउमकित्ति कृत पासणाह 11वीं सदी
हेमविजयगणिकृत पार्श्वचरितम् 14वीं सदी
पिता का नाम
महाकवि इधू कृत पासणा. 15-16वीं सदी
वज्रबाहु
वज्रबाहु
कुलिशबाहु
वज्रबाहु
बुध श्रीधर कृत पासणा. वज्रबाहु 12वीं सदी
(8) आठवाँ भव
माता का नाम
प्रभंकरी
सुदंसणा
प्रभंकरी
सुदंसणा
प्रभंकरी
प्रभंकरी
पार्श्व की पूर्वयोनि का नाम
आनंद मण्डलेश्वर
कनकबाहु चक्रवर्ती
सुवर्णाहु
चक्रवर्ती
कनकप्रभ
चक्रवर्ती
सुवर्णबाहु
चक्रवर्ती
आनंद चक्रवर्ती
कमठ की पूर्व-योनि का नाम
सिंह
X
सिंह
चक्रवर्ती चक्रायुध सिंह
(9) नौवाँ भव पार्श्व के देह पार्श्व का जीव, त्याग का किस स्वर्ग में कारण
गया
सिंह के खा डालने से
X
सिंह के खा डालने से
सिंह के खा डालने से
प्राणंत कल्प
आनत
प्राणत
दशम कल्प
वैजयंत
दशम कल्प
चौदहवां कल्प
वैजयन्त
कमठ का जीव किस नरक में
गया
नरक
तमप्रभ
पंकप्रभा
चतुर्थ नरक
रौद्र नरक
चतुर्थ नरक
धूमप्रभ नरक
प्रथम नरक
उक्त पार्श्वचरितकारों की यह विशेषता रही है कि उन्होंने पार्श्व सम्बन्धी कथानक को प्राप्त परम्पराओं के आलोक में यथारुचि विस्तार तो दिया ही विभिन्न काव्य शैलियों के प्रयोग कर जैनेतर विकसित श्रेण्य साहित्य की श्रेणी में भी जैन साहित्य को प्रतिष्ठित स्थान प्रदान कराया, यही नहीं, जैन कवियों की एक अन्य विशेषता यह भी रही, कि उन्होंने वर्णन - प्रसंगों में काल्पनिक उड़ानों के मध्य भी युगीन परिस्थितियों एवं लोकजीवन की जीवन झाँकियाँ तो प्रस्तुत की ही रचना के आदि अथवा अन्त में स्ववृत्त के साथ-साथ प्रायः अन्य सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक घटनाओं के तथ्य प्रस्तुत कर समकालीन ऐतिहासिक तथ्यों को भी सुरक्षित रखा है।
अपभ्रंश भाषा का पार्श्व सम्बन्धी चरित-साहित्य
अपभ्रंश भाषा में पार्श्वचरित सम्बन्धी साहित्य अधिक मात्रा में उपलब्ध नहीं है। इसके तीन कारण हो सकते हैं 1. विदेशी आक्रमणों के समय राजनैतिक अराजकता के कारण अनेक ग्रन्थ लुप्त-विलुप्त हो गए, अथवा, 2. विदेशी पर्यटकों द्वारा उनका अपहरण अथवा धन-लोलुपियों द्वारा विदेशों में तद्विषयक ग्रन्थ विक्रय कर दिये । अथवा, भारत में ही वे कहीं कोने-अंधेरे में छिपे पड़े हैं।
3.
24 पासणाहचरिउ