Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ५
वट्टतो उ अजोगी न किञ्चि कम्मं उदीरेइ । अर्थात् अयोगि आत्मा किसी भी कर्म को उदीरित नहीं करती है।
इस प्रकार से गुणस्थानों में मूल कर्मों की उदीरणा विधि जानना चाहिये और इसके साथ ही गुणस्थानों में मूल कर्म प्रकृतियों की बंध, उदय, सत्ता और उदीरणा विधि का विवेचन पूर्ण होता है । सरलता से बोध करने के लिए जिसका प्रारूप इस प्रकार है
क्रम
गुणस्थान नाम
बंध उदय । सत्ता | उदीरणा प्रकृतियाँ | प्रकृतियाँ प्रकृतियाँ प्रकृतियाँ
|
मिथ्यात्व
८८७
सासादन
is
८७
r
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मिश्र अविरतसम्यग्दृष्टि
»
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देशविरत
Is
प्रमत्तसंयत
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१
अप्रमत्तसंयत निवृत्ति (अपूर्वकरण)
IS
।
२ दि० पंचसंग्रह शतक अधिकार, गाथा २२६ में भी इसी प्रकार का उल्लेख
है । तुलना कीजिये-वतो दु अजोगी ण किंचि कम्म उदीरेइ ।
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