Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 610
________________ पंचसंग्रह भाग ५ : परिशिष्ट ५ कर्म का नाम स्थान व संख्या प्रकृतिक भूयस्कार अल्पतर अवस्थित अवक्तव्य नाम ६ ८ | ६ | । बंधस्थान ८ २३, २५, २६, २८, २९, ३०, । ३१, १ प्रकृतिक उदयस्थान १२२०, २१, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, |३१, ६, ८ प्रकृ. सत्तास्थान १२ ६३, ६२, ८६, ८८, ८६, ८०, ७६, ७८, ७६, ७५. ६, ८ प्रकृतिक बंधस्थान ११ प्रकृतिक उदयस्थान १ १ प्रकृतिक सत्तास्थान २ २, १ प्रकृतिक ६ । १० १० x __ गोत्र xxx xxx xxx xxx xxn on अन्तराय बंधस्थान १५ प्रकृतिक उदयस्थान १५ प्रकृतिक सत्तास्थान १ ५ प्रकृतिक विशेष-गोत्रकर्म में अवक्तव्य सत्ता उच्चगोत्र की सत्ता पुनः प्राप्त होने की अपेक्षा समझना चाहिए । किन्तु गोत्रकर्म की सत्ता का नाश होने के पश्चात् पुनः सत्ता सम्भव नहीं होने से अवक्तव्य सत्ता घटित नहीं होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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