Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पचसग्रह भाग ५ : परिशिष्ट १०
५
स्थान
मूल प्रकृति
स्वामी
भूयस्कार अल्पतर अवस्थित अवक्तव्य
सत्ता ८ प्रकृ.। सब | आदि के ११ ।
गणस्थान , ७ , मोह, बिना | क्षीणमोह
गुणस्थान ,, ४ ,, चार अघाति | १३वां, १४वां
गुणस्थान विशेष(१) तीसरे, आठवें, नौवें गुणस्थान को छोड़कर शेष पहले से सातवें
गुणस्थान तक आयुबंध होने पर सात प्रकृतिक बंधस्थान नहीं
समझना चाहिए । किन्तु आठ प्रकृतिक बंधस्थान होता है। (२) चारों बंधस्थान पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय में ही प्राप्त होते हैं। शेष
तेरह जीवस्थानों में आठ और सात प्रकृतिक बंधस्थान होते हैं । (३) पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय में ही तीनों उदयस्थान एवं तीनों सत्तास्थान
होते हैं। शेष तेरह जीवस्थानों में आठ प्रकृतिक उदय व सत्ता स्थान होते हैं । क्षपक को भी सूक्ष्मसंपरायणस्थान की अन्तिम आवलिका में एवं उपशांतमोह और क्षीणमोह गुणस्थान की एक आवलिका पूर्व तक मोहनीय, वेदनीय, आयु के बिना पांच मूल कर्मों की उदीरणा
होती है। (५) क्षीणमोहगुणस्थान की अन्तिम आवलिका में नाम और गोत्र इन
दो कर्मों की उदीरणा होती है। (६) संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त में पांचों उदीरणास्थान एवं शेष तेरह जीव
भेदों में सात अथवा आठ प्रकृतिक उदीरणास्थान होते हैं ।
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