Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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TTS
क्रम प्रकृतियों के नाम
२०
२१
२२
२४
२५
औदारिक अंगोपांग, सेवार्त संहनन
२३ आहारकद्विक
२६
विकलत्रिक, सूक्ष्मत्रिक
पंचेन्द्रियजाति, तैजस, कार्मण हुंडकसंस्थान, वर्ण चतुष्क, अशुभविहायोगति, पराधात, उच्छ्वास, अगुरुलघु, निर्माण, उपघात, त्रसचतुष्क, अस्थिरषट्क
तीर्थंकरनाम
यशः कीर्ति,
नीचगोत्र
उच्चगोत्र
उत्कृष्ट स्थितिबध के स्वामी अति सं. मिथ्या । विशुद्ध पर्याप्त बादर नारक, सनत्कुमार से सहस्रार तक के देव । तत्प्रायोग्य सं. मिथ्यादृष्टि मनुष्य, तिर्यंच
एकेन्द्रिय
अतिसंक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि पर्याप्त संज्ञी
प्रमत्ताभिमुख अप्रमत्त
यति
मिथ्यात्व नरकाभिमुख क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी चरम समयवर्ती
मनुष्य
तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट पर्याप्त मिथ्यादृष्टि
संज्ञी
अतिसक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि पर्याप्त संज्ञी
पंचसंग्रह ५
जघन्य स्थितिबंध के स्वामी
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11
27
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13
क्षपक स्वबंधविच्छेद समयवर्ती
11
क्षपक सूक्ष्मसंपरा चरम समयवर्ती
विशुद्ध पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय
इस प्रकार से स्थितिबंध के स्वामित्व की प्ररूपणा जानना चाहिए । अब उत्कृष्ट और जघन्य स्थितिबंध की शुभाशुभरूपता की प्ररूपणा
करते हैं ।
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