Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधविधि प्ररूपणा अधिकार : गाथा ७४
क्रम
२५
२६
२७
२८
२६
३१
सूक्ष्मत्रिक, विकलत्रिक
३३
प्रकृतियां
एकेन्द्रिय, स्थावर
नन
मध्यम चार संहनन, चार संस्थान
सेवार्त संहनन
३० समचतुरस्रसंस्थान, स्थिर -
हुंडकसंस्थान, अशुभविहायोगति, अस्थिर
षट्क
३२ अशुभवर्ण चतुष्क, उपघात
आतप
उत्कृष्ट अनुभागबंध के स्वामी
वज्रऋषभनाराच संह- सर्वविशुद्ध सम्यग्दृष्टि | परावर्तमान
देव
तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि मनुष्य, तिर्यंच
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अति संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि ईशानान्त देव
अपूर्वकरण
क्षपक पंचक, शुभविहायोगति स्वबंधविच्छेदवर्ती
अति संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि पर्याप्त संज्ञी
तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि
अति संक्लिष्ट मिथ्या दृष्टि नारक ईशानान्त देव
तथा
"1
तत्प्रायोग्य ईशानान्त देव
"
विशुद्ध
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जघन्य अनुभागबंध के स्वामी
तत्प्रायोग्य विशुद्ध मिथ्यादृष्टि मनुष्य, तिर्यंच
२६१
नरक के सिवाय तीन गति के मिथ्यादृष्टि मध्यम परिणामी जीव
मध्यम परिणामी मिध्यादृष्टि
परावर्तमान मध्यम परिणामी मिध्यादृष्टि
मध्यम
परावर्तमान परिणामी मिथ्यादृष्टि
परावर्तमान मध्यम परिणामी
11
11
अपूर्वकरणवर्ती क्षपक स्वबंध विच्छेद के
समय
अति संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि ईशानांत देव
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