Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 576
________________ पंचसंग्रह भाग ५ : परिशिष्ट ४ २७ अपेक्षा चार भूयस्कारबन्ध हुए । छब्बीस प्रकृतिक स्थान का बन्ध करने वाला २८, २९ व ३० प्रकृतिक बन्धस्थान का बन्ध करता है, जिससे तीन भूयस्कार हुए । अट्ठाईस प्रकृतिक बन्धस्थान का बन्धक २६, ३० और ३१ प्रकृतिक स्थान का बन्ध कर सकता है । जिससे तीन भूयस्कार हुए । उनतीस प्रकृतिक स्थान को बांधने वाला ३० व ३१ प्रकृतियों का बन्ध कर सकता है, जिससे उसकी अपेक्षा दो भूयस्कार हुए तथा तीस प्रकृतिक स्थान का बन्धक इकतीस प्रकृतियों का बन्ध करता है, इस अपेक्षा से एक भूयस्कारबन्ध हुआ । उक्त सभी ४, ५, ४, ३, ३, २, १ को मिलाने पर कुल २२ भूयस्कार बन्ध हो जाते है । अल्पत रबन्ध इक्कीस अल्पतर बन्धप्रकारों को इस तरह से जानना चाहिए तीस को आदि लेकर तेईस तक के स्थानों को बांधने पर तथा इकतीस को बांध कर तीस उनतीस व एक प्रकृति को बांधने पर एवं अट्ठाईस एवं उनतीस को बांधने वाले को एक यशःकीर्ति बांधने पर कुल मिलाकर इक्कीस अल्पतरवन्ध होते हैं । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है— —- तीस प्रकृतिक बंधस्थान का बंध करने वाले २६, २५, २६, २५ और २३ प्रकृतियों का बन्ध करते हैं। जिससे पांच अल्पतरबन्ध हुए । उनतीस प्रकृतियों को बांधने वाले २८, २६, २५ और २३ प्रकृतियों का बन्ध कर सकते हैं । अतः उसकी अपेक्षा चार अल्पतरबन्ध हुए । अट्ठाईस प्रकृतियों को बांधने वाला २६, २५ और २३ प्रकृतियों को बांध सकते हैं । अतः उसकी अपेक्षा तीन अल्पतरबन्ध होते हैं । छब्बीस प्रकृतियों को बांधने वाला पच्चीस और तेईस प्रकृतियों को बांध सकता है । अतः ऐसे जीव की अपेक्षा दो अल्पतरबंध हुए । पच्चीस प्रकृतिक बन्धस्थान के बन्धक के तेईस प्रकृतियों का बन्ध सम्भव है । अतः उसकी अपेक्षा एक अल्पतर बन्ध होता है । इकतीस प्रकृतियों के बन्धक के तीस, उनतीस और एक प्रकृति का बन्ध सम्भव है, जिससे उसकी अपेक्षा तीन अल्पतरबन्ध होते हैं । अट्ठाईस प्रकृतियों के बन्धक के एक प्रकृतिक बन्धस्थान का बन्ध सम्भव होने से एक अल्पतरबन्ध होता है । इसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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