Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 574
________________ पंचसंग्रह भाग ५ : परिशिष्ट ३ क्योंकि देव होकर सत्रह प्रकृतियों को दो प्रकार से बांधता है । अतः दो अवक्तव्यबन्ध हुए । इस प्रकार कुल तीन अवक्तव्यबन्ध जानना चाहिए। एक सौ सत्ताईस भूयस्कार, पैंतालीस अल्पतर और तीन अवक्तव्य बन्ध मिलकर एक सौ पचहत्तर होते हैं । अतः इतने ही अवस्थितबन्ध अर्थात् एक सौ पचहत्तर अवस्थितबन्ध होते हैं । इस प्रकार विशेष रूप से मोहनीयकर्म के भूयस्कार आदि बन्धप्रकारों को जानना चाहिए।' १ आधार गो. कर्मकाण्ड, गाथा ४६८-४७४ तथा पंचसंग्रह शतक अधिकार गाथा २४६-२५५ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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