Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 590
________________ पंचसंग्रह भाग ५ : परिशिष्ट ५ ४१ नलिन, कमलांग, कमल, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अममांग, अमम, हाहांग, हाहा, हूहूअंग, हूहू, लतांग, लता, महालतांग, महालता, श्रीकल्प, हस्तप्रहेलित । इस प्रकार विभिन्न ग्रन्थों में संज्ञाओं के नामों व क्रम में अन्तर है । लेकिन सभी ने अन्तिम नाम के रूप में समान रूप से प्रहेलिका-प्रहेलित शब्द स्वीकार किया है। इस विभिन्नता के लिए क्षेत्र, काल का अन्तर ही कारण हो सकता है । परन्तु गणनीय काल की अन्तिम संज्ञा को एक रूप में माना है कि यहाँ तक गणनीय काल का वर्णन समझना चाहिए । जैन साहित्य में कालगणना का रूपक इस प्रकार है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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