Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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परिशिष्ट ७ ७ दिगम्बर साहित्यगत आयुबंध सम्बन्धी
अबाधाकाल का स्पष्टीकरण आयुकर्म के सिवाय शेष ज्ञानावरणादि सात कर्मों के स्थितिबंध सम्बन्धी अबाधाकाल के लिये श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में कोई मतभिन्नता नहीं है और यह निर्विवाद है कि आयुकर्म की जो भी स्थिति बंधती है वह अनुभवयोग्या ही होती है। उसमें कर्मरूपतावस्थानलक्षणा भेद नहीं है तथा उसकी जो भी अबाधा होती है वह भुज्यमान आयु में ही गभित है । वह अबाधा संख्यात वर्ष की आयु वालों की अपेक्षा उत्कृष्ट पूर्वकोटि का त्रिभाग से लेकर जघन्य अन्तमुहूर्त पर्यन्त की भी हो सकती है। इसीलिये आयु सम्बन्धी अबाधाकाल के बारे में निम्नलिखित चार विकल्प होते हैं
(१) उत्कृष्ट स्थितिबंध, जघन्य अबाधाकाल । (२) जघन्य स्थितिबंध, उत्कृष्ट अबाधाकाल । (३) उत्कृष्ट स्थितिबंध, उत्कृष्ट अबाधाकाल । (४) जघन्य स्थितिबंध, जघन्य अबाधाकाल ।
इन चार विकल्पों के बनने का कारण यह है कि आयुकर्म का बंध सदैव नहीं होता रहता है। उसका बंध भुज्यमान उत्कृष्ट स्थिति के विभाग में भी हो सकता है और नहीं भी हो। ऐसे विभाग के भी विभाग करते-करते आठ त्रिभाग हो सकते हैं और उनमें भी यदि आयुकर्म का बंध न हो तो मरण से अन्तमुहूर्त पूर्व तो अवश्य परभव सम्बन्धी आयु का बंध हो जाता है। क्योंकि परभव सम्बन्धी आयु का बंध हुए बिना मरण नहीं होता है। यही अनिश्चितता आयुकर्म की अबाधाकाल के उक्त विकल्पों के बनने का कारण है । ____संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज मनुष्यों, तिर्यंचों की उत्कृष्ट आयु पूर्व कोटि वर्ष और क्षुल्लकभव रूप अन्तमुहूर्त प्रमाण जघन्य आयु होती है । इनकी आयुबंध और अबाधाकाल के विषय में सामान्यतया यही मंतव्य दिगम्बर
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