Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
३२
पंचसंग्रह : ५
होता है । दो हजार धनुष की एक गव्यूति (गाऊ) होती है, चार गव्यूति का एक योजन होता है।
पूर्वोक्त योजन के परिमाण से एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा, तिगुनी से अधिक परिधि वाला' एक पल्य-गड्ढा हो । उस पल्य में देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों के एक दिन के उगे हुए, दो दिन के उगे हुए, तीन दिन के उगे हुए और अधिक से अधिक सात दिन के उगे हुए'
१ इसकी परिधि कुछ कम ३ १ योजन होती है। २ इन बालाग्रखण्डों के लिए शास्त्रों में विभिन्न मंतव्य है। यथा
अनुयोगद्वारसूत्र में 'एगाहिअ वेआहिअ तेआहिअ जाव उक्कोसेण सत्तरत्तरूढाणं बालग्ग कोडीणं' लिखा है ।
प्रवचनसारोद्धार में भी इसी से मिलता-जुलता पाठ है । दोनों की टीका में इस प्रकार अर्थ किया है—सिर के मुड़ा देने पर एक दिन में जितने बाल निकलते हैं, वे एकाहिक्य कहलाते हैं आदि, इसी तरह सात दिन तक के उगे हुए बाल लेना चाहिए ।
द्रव्यलोकप्रकाश में 'उत्तरकुरु के मनुष्य का सिर मुड़ा देने पर एक से सात दिन के अन्दर उत्पन्न केशराशि लेने का संकेत किया है । उसके आगे लिखा है-क्षेत्रसमास की बृहद्वृत्ति और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति का यह अभिप्राय है । अर्थात् उनमें उत्तरकुरु के मनुष्य के केशाग्न लेना बताया है। प्रवचनसारोद्धार की वृत्ति और संग्रहणी की बृहद्वृत्ति में सामान्य से सिर मुड़ा देने पर एक से लेकर सात दिन तक के उगे हुए बालों का उल्लेख है, उत्तरकुरु के मनुष्यों के बालानों को ग्रहण नहीं किया है।
क्षेत्रविचार की स्वोपज्ञवृत्ति में लिखा है-देवकुरु-उत्तरकुरु में जन्मे सात दिन के मेष (भेड़) के उत्सेधांगुल प्रमाण रोम लेकर उनके
(क्रमशः)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org