Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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३१४
क्रम
१०
१६
१५ देवायु
१७
प्रकृतियां
११
संज्वलन लोभ
पंचम भागवर्ती
१२ हास्य, रति, शोक, अरति अविरत सम्यग्दृष्टि
१३
भय, जुगुप्सा
१४ | पुरुषवेद
१८
संज्वलन माया
१६
मनुष्यायु, तिर्यचायु
नरकायु
afge, वैयकि
नरकद्विक
उत्कृष्ट प्रदेशबंध स्वामित्व
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नौवें गुणस्थान का चतुर्थ भागवर्ती
?? 17
अष्टम गुणस्थानवर्ती
नौवें गुणस्थान प्रथम भागवर्ती
अप्रमत्तसंयत
का
मिथ्यादृष्टि पर्याप्त संज्ञी
देवप्रायोग्य अट्ठाईस का बंधक
मिथ्यादृष्टि पर्याप्त सर्वात्प
संज्ञी
नरकप्रायोग्य अट्ठाईस का बंधक
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पंचसंग्रह : ५
जघन्य प्रदेशबंध स्वामिra
सबसे अल्प वीर्य वाला लब्धि अपर्याप्त सूक्ष्म निगोदिया जीव भवाद्य
समय
"
"
31
"
जघन्य योगी, पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय
वीर्यवंत,
लब्धि- अपर्यात सूक्ष्म निगोदिया स्वायु तृतीय भाग प्रथम समयवर्ती
जघन्य योगी, पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय
भवाद्य समय में देवप्रायोग्य उनतीस का बंधक सभ्य मनुष्य
जघन्य योगी, पर्याप्त, असंज्ञी पंचेन्द्रिय आठ का बंधक
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