Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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३१६
क्रम
२७
२८
२६
३०
३३
३४
प्रकृतियां
३५
उद्योत
मध्यम संस्थान संहनन चतुष्क
वज्रऋषभनाराच
३१ अशुभ विहायोगति, दुःस्वर
३२ सूक्ष्म, साधारण
संहनन
समचतुरस्रसंस्थान, विहायोगति,
शुभ
स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय
अपर्याप्त
यशः कीर्ति
आहारकद्विक
व
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उत्कृष्ट प्रदेशबंध स्वामित्व
नरक बिना तीन गति के जीव एक. प्रायोग्य छब्बीस के बंधक तियंच अथवा मनुष्य प्रायोग्य उनतीस का
बंधक
मनुष्यप्रायोग्य तीस का बंधक
उन
देवप्रायोग्य अट्ठाईस
का बंधक
नरकप्रायोग्य अट्ठाईस
का बंधक
11
सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान
वर्ती
देवप्रायोग्य तीस का बंधक अप्रमत्त संयत
पंचसंग्रह : ५
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जघन्य प्रदेशबध स्वामित्व
तिर्यंचप्रायोग्य
का बंधक
31
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एकेन्द्रिययोग्य तेईस पर्याप्त एके. प्रायोग्य पच्चीस का बंधक
का बंधक
37
""
तीस
अपर्या त्रसप्रायोग्य पच्चीस का बंधक
तिर्यंचप्रायोग्य तीस का बंधक
अष्टविध बंधक देवप्रायोग्य इकतीस का बंधक अप्रमत्त यति
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