Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 557
________________ पंचसंग्रह (५) साई अधुवोऽधुवबंधियाणेऽधुवबंधणा चेव । जाण जहिं बंधतो उक्कोसो ताण तत्थेव ।।६।। अप्पतरपगइबंधे उक्कडजोगी उ सन्निपजत्तो। कुणइ पएसुक्कोसं जहन्नयं तस्स वच्चासे ।।१।। सत्तविहबन्धमिच्छे परमो अणमिच्छथीणगिद्धीणं । उक्कोससंकिलिट्ठ जहन्नओ नामधुवियाणं ।।१२।। समयादसंखकालं तिरिदुगनीयाणि जाव बझंति । वेउवियदेव दुगं पल्लतिगं आउ अंतमुहू ।।१३।। देसूणपुव्वकोडी सायं तह असंखपोग्गला उरलं । परघाउस्सासतसचउपणिदि पणसीय अयरसयं ।।१४।। चउरंस उच्च सुभखगइपुरिस सुस्सरतिगाण छाबट्ठी । बिउणा मणुदुगउरलंगरिसहतित्थाण तेत्तीसा ।।५।। सेसाणंत मुहुत्त समया तित्थाउगाण अंतमुहू । बंधो जहन्नओवि हु भंगतिगं निच्चबंधीणं ।।६६।। होइ अणाइअणंतो अणाइसंतो धुवोदयाणुदओ। साइसपज्जवसाणो अधुवाणं तह य मिच्छस्स ।।७।। पयडीठिइमाईया भेया पुव्वुत्तया इहं नेया । उद्दीरणउदयाणं जन्नाणत्तं तयं वोच्छं ॥६॥ चरिमोदयमुच्चाणं अजोगिकालं उदीरणाविरहे । देसूणपूव्वकोडी मणुयाउयसायसायाणं ।।१६।। तइयच्चिय पज्जत्ती जा ता निदाण होइ पंचण्हं । उदओ आवलिअंते तेवीसाए उ सेसाणं ।।१०।। मोहे चउहा तिविहोवसेस सत्तण्ह मूलपगईणं । मिच्छत्तुदओ चउहा अधुवधुवाणं दुविहतिविहा ।।१०१।। उदओ ठिइक्खएणं संपत्तीए सभावतो पढमो । सति तम्मि भवे बीओ पओगओ दीरणा उदओ ॥१०२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616