Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बन्धविधि-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १
बन्धावलियाईयं आवलिकालेण बीइ ठिइहिंतो। लयठाणं लयठाणं नासेई संकमेणं तु ।।१८१।। संजलणतिगे दुसमयहीणा दो आवलीण उक्कोसं । फड्डं बिईयठिइए पढमाए अणु दयावलिया ।।१८२॥ आवलिय दुसमऊणा. मेत्त फड्डं तु पढमठिइविरमे । वेयाणवि बे फड्डा ठिईदुगं जेण तिण्हपि ॥१८३।। पढमठिईचरमुदये . बिइयठिईए व चरमसंछोभे । दो फड्डा वेयाणं दो इगि संतं हवा एए ॥१८४।। चरमसंछोभसमए एगाठिइ होइ इत्थीनपुंसाणं । पढमठिईए तदंते पुरिसे दोआलि दुसमूणं ।।१८।।
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