Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
बन्धविधि प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १
उद्दरण जग्गाणं अमहिय ठिईए उदयजोग्गाओ । हस्सुदओ एगठिईणं निदुणा एगियालाए ||१०३ ॥ अणुभाणुदओवि उदीरणाए तुल्लो जहन्नयं नवरं आवलिगंते सम्मत्तवेयखीणंतलोभाणं ॥०४ ||
अजहन्नोऽणुक् कोसो चउह तिहा छण्ह चउविहो मोहे आउस्स साइअधुवा सेसविगप्पा य सव्वेसि ॥ १०५ ॥
सेसाणं ।। १०६ ।।
अजहतोऽणुक्कोस धुवोदयाणं चउ तिहा चउहा । मिच्छत्त सेसासि दुविहा सव्वे य संमत्तदेस संपुन्नविरइउप्पत्तिअणविसंजोगे दंसणखवगे मोहस्स समणे उवसंतखवगे य ॥१०७॥ खीणाइतिगे असंखगुणिय गुणसेढिदलिय जहक्कमसो । सम्मत्ताईणेक्कारसह कालो उ संखंस || १०८ ||
झत्ति गुणाओ पडिए मिच्छत्तगयंमि आइमा तिन्नि । लब्भंति न सेसाओ जं झीणासुं असुभमरणं ।। १०६ ।।
गुणसेढीसीसगे गुणियकम्मो ।
।
उक्को सपएसुदयं सव्वासु कुणइ ओहेण खत्रियकम्मो पुण जहन्नं ॥ ११० ॥ समत्तवेयसंजलणयाण खीणंत दुजिणअंताणं । लहु खवणाए अंते अवहिस्स अणोहिणु कोसो ॥ १११ ॥ पढमगुणसे ढिसीसे निद्दापयलाण कुणइ उवसंतो । देवत्त झत्ति गओ वेउन्त्रियसुरदुग स एव ॥ ११२ ॥ तिरिएगंतुदयाणं मिच्छत्तणमीसथीण गिद्वीणं । अपज्जत्तस्स य जोगे दुतिगुणसेढीण सीसाणं ॥ ११३ ॥ से कालेंतरकरणं होही अमरो य अंतमुहु परओ । उक्कोस एसओ हासाइसु मज्झिमड | | ११४ ॥ अद्धाजोगाइठिइनिसेगाणं ।
हस्सfos बंधिता उक्कोसपए
सुरनारगाऊ ||११५ ।।
Jain Education International
पदमोदयम्म
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616