Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह (५) सव्वाण ठिई असुभा उक्कोसुक्कोससंकिलेसेणं । इयरा उ विसोहीए सुरनरतिरिआउए मोत्त ॥६४।। अणुभागोणुक्कोसो नामतइज्जाण घाइ अजहन्नो । गोयस्स दोवि एए चउविवहा सेसया दुविहा ।।६५।। सुभधुवियाणणुक्कोसो चउहा अजहन्न असुभधुवियाणं । साई अधुवा सेसा चत्तारिवि अधुवबंधीणं ।।६६।। असुभधुवाण जहण्णं बंधगचरमा कुणंति सुविसुद्धा। समयं परिवडमाणा अजहण्णं साइया दोवि ।।६७।। सयलसुभाणुक्कोसं एवमणुक्कोसगं च नायव्वं । वन्नाई सुभ असुभा तेणं तेयाल धुव असुभा ।।६८॥ सयलासुभायवाणं उज्जोयतिरिक्खमणुयआऊणं । सन्नी करेइ मिच्छो समयं उक्कोसअणुभागं ॥६९।। आहार अप्पमत्तो कुणइ जहन्नं पमत्तयाभिमुहो । नरतिरिय चोदसण्हं देवाजोगाण साऊण ।।७।। ओरालियतिरिय दुगे नीउज्जोयाण तमतमा छण्हं । मिच्छ - नरयाणभिमुहो सम्मद्दिट्ठि उ तित्थस्स ।।७१।। सुभधुव तसाइ चउरो परघाय पणिदिसास चउगइया । उक्कडमिच्छा ते च्चिय थीअपुमाणं विसुझंता ।।७२।। थिरसुभजससायणं सपडिवक्खाण मिच्छ मम्मो वा । मझिमपरिणामो कुणइ थावरेगिदिय मिच्छो ।।७३।। सुसुराइति न्नि दुगुणा संठिइसंघयण मणुयविहजुयले । उच्चे चउगइ मिच्छा अरईसोगाण उ पमत्तो ।।७४।। सेढिअसंखेजसो जोगट्टाणा तओ असंखेज्जा । पयडीभेआ तत्तो ठिइभेया होति तत्तोवि ।।७।। ठिइबधझवसाया तत्तो अणुभागबंधठाणाणि । तत्तो कम्मपएसाणंतगुणा तो रसच्छेया ।।७६।।
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