Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार · गाथा १८४, १८५
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__स्त्रीवेद और नपुसकवेद की दूसरी स्थिति के चरम स्थितिघात के चरम संछोभ-संक्रम के समय प्रथम स्थिति का एक समय मात्र शेष रहता है, और पुरुषवेद की प्रथम स्थिति का अनुभव करते हुए जब क्षय होता है तब दूसरी स्थिति का दो समयन्यून दो आवलिका काल में बंधा हुआ दलिक सत्ता में शेष रहता है। दो समयन्यून दो आवलिका काल में बंधा हुआ दलिक जब शेष रहता है तब उस अवेदो जीव के संज्वलनत्रिक में किये गये कथन के अनुरूप दो समयन्यून दो आवलिका प्रमाण स्पर्धक समझना चाहिये।
इस प्रकार समग्ररूपेण अधिकृत विवेचनीय विषयों का विवेचन हो जाने से बंधविधि नामक अधिकार की प्ररूपणा पूर्ण होती है और इसके साथ ही कर्मसिद्धान्त का निरूपण करने वाले पंचसंग्रह नामक ग्रन्थ का योगोपयोगमार्गणा आदि पांच विषयों का संग्राहक पंचम भाग भी समाप्त होता है।
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