Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
बंधविधि प्ररूपणा अधिकार : गाथा १५६
जो सव्वसंकमेणं इत्थी पुरिसम्मि छुहइ सो सामी । पुरिसस्स कमा संजलणयाण सो चेव संछोभे ॥ १५६ ॥
४३६
---
शब्दार्थ -- जो-जो ( गुणितक मश), सव्वसंकमेणं - सर्वसंक्रम के द्वारा, इत्थी - स्त्रीवेद को, पुरिसम्म - पुरुषवेद में, छइ- संक्रांत करता है, स ेवह सामी - स्वामी, पुरिसस्स - पुरुषवेद का, कमा-- अनुक्रम से, सजलणयाणसंज्वलन कषायों का, सो चेव-वही, संछोभे- संक्रांत करने पर ।
गाथार्थ - जो गुणितकर्यांश सर्वसंक्रम द्वारा स्त्रीवेद के दलिक को पुरुषवेद में संक्रांत करे वह पुरुषवेद की और अनुक्रम से पुरुषवेदादि को संज्वलन कषायों में संक्रांत करने पर वही संज्वलन क्रोधादि कषायों की उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता का स्वामी होता है । विशेषार्थ - यहाँ पुरुषवेद और संज्वलनकषायचतुष्क के उत्कृष्ट प्रदेश सत्तास्वामित्व का निर्देश किया है
जो गुणितकर्माश क्षपक स्त्रीवेद के दलिकों को सर्वसंक्रम द्वारा पुरुषवेद में संक्रमित करता है वह पुरुषवेद की उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता का स्वामी है 'सो सामी पुरिसस्स' । तत्पश्चात् वही जीव अनुक्रम से पुरुषवेदादि के दलिकों को संज्वलन क्रोधादि में संक्रांत करे तब वह क्रमशः संज्वलन क्रोध, मान आदि की उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता का स्वामी जानना चाहिए । तात्पर्य यह हुआ-
जो जीव पुरुषवेद की उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता का स्वामी है, वही जब पुरुषवेद के दलिकों को सर्वसंक्रम द्वारा संज्वलन क्रोध के दलिकों में संक्रांत करे तब वह संज्वलन क्रोध की उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता का स्वामी है । इसी प्रकार से जब संज्वलन क्रोध के दलिकों को सर्वसंक्रम द्वारा संज्वलन मान में संक्रांत करे तब संज्वलन मान की और जब संज्वलन मान के दलिकों को सर्वसंक्रम द्वारा संज्वलन माया में संक्रांत करे तब संज्वलन माया की और जब संज्वलन माया के दलिकों को सर्वसंक्रम द्वारा संज्वलन लोभ में संक्रांत करे तब संज्वलन लोभ की उत्कृष्ट प्रदेशसत्ता का स्वामी होता है । तथा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org