Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ५
त्रिक का उत्कृष्ट प्रदेशबंध होता है तथा अपर्याप्त सूक्ष्म निगोदिया जीव के नामकर्म की ध्र वबंधिनी प्रकृतियों का जघन्य प्रदेशबंध होता है।
विशेषार्थ-गाथा में विशेष स्पष्टतापूर्वक मिथ्यात्व आदि आठ प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबंध और ध्र वबंधिनी नामकर्म की प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशबंध के स्वामित्व का निरूपण किया है । पहले मिथ्यात्व आदि आठ प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबंध के स्वामित्व को बतलाते हैं
सर्वोत्कृष्ट योगस्थान में वर्तमान मिथ्यादृष्टि के अनन्तानुबंधिकषायचतुष्क, मिथ्यात्व, स्त्यानद्धित्रिक-निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला और स्त्याद्धि इन आठ प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशबंध होता है । अर्थात् सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, सर्वोत्कृष्ट योगस्थान में वर्तमान, सात कर्मों का बंधक संज्ञी पंचेन्द्रिय पूर्वोक्त अनन्तानुबंधिकषायचतुष्क आदि आठ प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबंध का स्वामी है ।
अब नाम-ध्र वबंधिनी प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशबंध के स्वामी का निर्देश करते हैं
__ तेजस, कार्मण, अगुरुलघु, उपघात, वर्णचतुष्क और निर्माण इन ध्र वबंधिनी नामनवक प्रकृतियों का सात कर्म का बंधक, मिथ्यादृष्टि, अपर्याप्त, सर्व जघन्य योगस्थान में वर्तमान नामकर्म की तिर्यंचगतियोग्य तीस प्रकृतियों को बांधते हुए सूक्ष्म निगोदिया जीव जघन्य प्रदेशबंध का स्वामी है।
इस प्रकार से बंधप्रकृतियों का उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशबंध स्वामित्व जानना चाहिये । सरलता से समझने के लिए जिसका प्रारूप इस प्रकार है
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