Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार गाथा : ७५, ७६
२६५ विशेष होते हैं। ये स्थितिविशेष प्रकृति के भेदों से असंख्यातगुणे हैं । क्योंकि एक-एक प्रकृति असंख्यात तरह की स्थितियों को लेकर बंधती है । जैसे एक जीव एक ही प्रकृति को कभी अन्तमुहूर्त की स्थिति से बांधता है, कभी एक समय अधिक अन्तर्मुहूर्त की स्थिति के साथ बांधता है । इस प्रकार जब एक प्रकृति और एक जीव की अपेक्षा से ही स्थिति के असंख्याता भेद होते हैं तब सब प्रकृतियों और सब जीवों की अपेक्षा से प्रकृति के भेदों से स्थिति के भेदों का असंख्यातगुणा होना स्पष्ट ही है । अतः प्रकृतिभेदों से स्थिति के भेद असंख्यातगुणे बताये हैं।
इन स्थिति के भेदों से भी स्थितिबंध में हेतुभूत अध्यवसाय-स्थितिबंधाध्यवसायस्थान असंख्यातगुण हैं-'तत्तो वि ठिइबंधज्झवसाया' । कषाय के उदय से होने वाले जीव के जिन परिणामविशेषों से स्थितिबंध होता है, उन परिणमों को स्थितिबंधाध्यवसाय कहते हैं । एक-एक स्थितिबंध के कारणभूत ये अध्यवसाय-परिणाम अनेक होते हैं। क्योंकि सबसे जघन्य स्थिति का बंध भी असंख्यात लोकाकाशप्रदेश प्रमाण अध्यवसायों से होता है। जब एक जीव की अपेक्षा ही यह स्थिति बनती है तब अनेक जीवों की अपेक्षा से असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण स्थितिबंधाध्यवसायस्थानों का होना स्वतः सिद्ध है। अतः स्थिति के भेदों से स्थितिबंधाध्यवसायस्थान असंख्यातगुणे होते हैं। ___ इन स्थितिबंधाध्यवसायस्थानों से भी अनुभागबंधाध्यवसायस्थानअनुभागबंध में हेतुभूत अध्यवसाय असंख्यातगुणे हैं-'तत्तो अणुभागबंधठाणाणि' । इसका तात्पर्य यह है कि अनुभागबध में आश्रयभूत, हेतुभूत कषायोदयमिश्रित लेश्याजन्य जीव के परिणामविशेष जो कि जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से आठ समय रहने वाले होते हैं, वे परिणाम स्थितिबंध के हेतुभूत अध्यवसायों से असंख्यातगुणे हैं। इसका कारण यह है कि स्थितिबध के हेतुभूत एक-एक अध्यवसाय में तीव्र और मंद आदि भेदरूप कृष्णादि लेश्या के परिणाम जो कि अनुभाग
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