Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधविथि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ८८, ८६, १७
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यद्यपि सासादनसम्यग्दृष्टि और मिश्रगुणस्थान में मोहनीय का सद्भाव है, लेकिन उत्कृष्ट योग न होने से उनके मोहनीय का उत्कृष्ट प्रदेशबंध संभव नहीं है । क्योंकि ऐसा सिद्धान्त है
सासणसम्मामिच्छेसुक्कोसो जोगो न हबइ ति । सासादन और मिश्रदृष्टि के उत्कृष्ट योग नहीं होता है। इसलिये उपर्युक्त सात गुणस्थान वाले ही मोहनीय के उत्कृष्ट प्रदेशबंध के स्वामी हैं।
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, नाम, गोत्र और अन्तराय इन छह कर्मों का उत्कृष्ट प्रदेशबंध उत्कृष्ट योगस्थान को प्राप्त सूक्ष्मसंपरायगुणस्थानवी जीव के होता है। क्योंकि अबध्यमान मोहनीय और आयु का भाग भी उनको प्राप्त होता है। ___इस प्रकार से मूल प्रकृति विषयक उत्कृष्ट प्रदेशबंध के स्वामित्व को जानना चाहिये । अब ध्र वगंधिनी उत्तर प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबांध के स्वामित्व का विवेचन करते हैं। ध्र वबंधिनी उत्तर प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशबंध-स्वामित्व ___मतिज्ञानावरणादि रूप ज्ञानावरणपंचक, चक्षुदर्शनावरणादि रूप दर्शनावरणचतुष्क और दानान्तरायादि रूप अन्तरायपंचक इन चौदह प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबंध का स्वामी उत्कृष्ट योगस्थान प्राप्त सूक्ष्मसंपरायगुणस्थानवी जीव है। इसका कारण यह है कि मोहनीय
दिगम्बर कर्मसाहित्य में पूर्वोक्त से भिन्नता हैआ उक्कस्स पदेसस्स छच्च मोहस्स ण व दु ठाणाणि ।।
-गो. कर्मकांड गा. २११
-दि. पंचसंग्रह शतक अधिकार ५०२ आयुकर्म का उत्कृष्ट प्रदेशबंध मिश्रगुणस्थान को छोड़कर प्रारम्भ के छह गुणस्थानों में तथा मोहकर्म का प्रारम्भ के नौ गुणस्थान में होता है।
एतद् विषयक विशेष वक्तव्य परिशिष्ट में देखिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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