Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ५
बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय का संक्लेश या विशुद्धि अन्य एकेन्द्रियों से अधिक है, जिससे उसको स्वयोग्य कम-से-कम और अधिक-सेअधिक स्थितिबंध हो सकता है। उससे सूक्ष्म पर्याप्त को संक्लेश भी कम और विशुद्धि भी कम, जिससे वह बादर पर्याप्त जितनी जघन्य या उत्कृष्ट स्थिति नहीं बांध सकता है । यथा - बादर पर्याप्त उत्कृष्ट सौ वर्ष और जघन्य पांच वर्ष की स्थिति बांधता हो तो सूक्ष्म पर्याप्त जघन्य पन्द्रह और उत्कृष्ट नब्वै बांधेगा । जिससे जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति के बीच में अन्तर कम-कम रहता है । जिससे बादर पर्याप्त से सूक्ष्म पर्याप्त के स्थितिस्थान कम होते हैं । इसी प्रकार बादर अपर्याप्त आदि के लिये भी समझना चाहिये ।
५ - ६ पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय के स्थितिस्थानों से अपर्याप्त द्वीन्द्रिय के स्थितिस्थान असंख्यातगुणे हैं । असंख्यातगुणे होने का कारण यह है कि अपर्याप्त द्वीन्द्रिय के स्थितिस्थान पत्योपम के संख्यातवें भाग के समय प्रमाण हैं। क्योंकि उनकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति के बीच में इतना ही अन्तर है और पिछले एकेन्द्रिय के स्थितिस्थान पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समय प्रमाण हैं । पल्योपम का संख्यातवां भाग असंख्यातवें भाग से संख्यात गुणा • बड़ा होने से अपर्याप्त द्वीन्द्रिय के स्थितिस्थान एकेन्द्रिय के स्थितिस्थानों से असंख्यातगुणे होते हैं। उनसे पर्याप्त द्वीन्द्रिय के स्थितिस्थान संख्यातगुणे हैं ।
७ - ८ उनसे अपर्याप्त त्रीन्द्रिय के स्थितिस्थान संख्यातगुणे हैं । उनसे पर्याप्त त्रीन्द्रिय के संख्यातगुणे हैं ।
ह -१० उनसे अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय के स्थितिस्थान संख्यातगुणे हैं। उनसे पर्याप्त चतुरिन्द्रिय के संख्यातगुणे हैं ।
११ – १२ उनसे अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय के स्थितिस्थान संख्यातगुणे हैं। उनसे पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय के संख्यातगुणे हैं । १३ – १४ उनसे अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय के स्थितिस्थान संख्यात
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