Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ५ तियों का उत्कृष्ट स्थितिबंध अत्यन्त तीव्र संक्लेश होने पर होता है। यद्यपि तिर्यंच और मनुष्यों के इन छह प्रकृतियों का बंध होता है, परन्तु वे माध्यमिक स्थिति बांधते हैं। क्योंकि जिस संक्लेशस्थिति में देव और नारक उपयुक्त छह प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति बांधते हैं, उस प्रकार के संक्लेश की स्थिति में मनुष्य और तिर्यंच नरकप्रायोग्य प्रकृतियों का बंध करते हैं, परन्तु तिर्यंच या मनुष्य प्रायोग्य प्रकृतियों का बंध नहीं करते हैं। इसीलिये देव अथवा नारकों को इन छह प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबंधक कहा है। ___एकेन्द्रियजाति, स्थावर और आतप इन तीन प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति उत्कृष्ट संक्लेश वाले ईशानस्वर्ग तक के देव बांधते हैं । अन्य जीव इनके बंधक न होने का कारण यह है कि नारक और सनत्कुमार आदि स्वर्गों के देवों को भवस्वभाव से ही इन प्रकृतियों का बंध होना असम्भव है और अति संक्लिष्ट परिणाम वाले तिर्यंच, मनुष्यों के नरकगतिप्रायोग्य प्रकृतियों का बंध होता है और मन्द संक्लेश में । उत्कृष्ट स्थिति के बंध का होना असम्भव है। इसलिए इन तीन प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति के बंधक मात्र ईशानस्वर्ग तक के देव ही बताये हैं।
पूर्वोक्त से शेष रही समस्त प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति के बंधक चारों गति के सर्व संक्लिष्ट मिथ्या दृष्टि जीव हैं ।1
इस प्रकार से उत्कृष्ट स्थिति के बंधकों का विचार करने के पश्चात् अब जघन्य स्थिति के बंधस्वामित्व का निर्देश करते हैं--
'एगिदिया जहन्नं...............' अर्थात् एकेन्द्रिय जघन्य स्थिति को बांधते हैं। मात्र कितनी ही प्रकृतियों की असंज्ञी और क्षपक जीव भी जघन्य स्थिति बांधते हैं। जिसका तात्पर्य इस प्रकार है
१ इसी प्रकार से दिगम्बर कर्म ग्रंथों में भी उत्कृष्ट स्थितिबंधस्वामित्व का
कथन किया है । देखिये पंचसंग्रह शतक अधिकार गाथा ४२५-४३२ ।
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