Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ५
और उष्णस्पर्श, आद्य संस्थान (समचतुरस्रसंस्थान), आद्य संहनन (वज्रऋषभनाराचसंहनन) इन सत्रह प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण है। जिसको मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति से भाग देने और ऊपर नीचे के समान शून्यों को काटने पर १/७ सागरोपम प्रमाण इन हास्यादि सत्रह प्रकृतियों की जघन्य स्थिति जानना चाहिये।
द्वितीय संहनन और द्वितीय संस्थान की उत्कृष्ट स्थिति बारह कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण है। उस में मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति से भाग देने और समान शून्यों को काटने एवं ऊपर नीचे की संख्याओं को दो से काटने पर ६/३५ द्वितीय संहनन (वज्रनाराचसंहनन) और द्वितीय संस्थान (न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान) की जघन्य स्थिति जानना चाहिये।
तृतीय संस्थान और संहनन की उत्कृष्ट स्थिति चौदह कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण है। उसमें मिथ्यात्वमोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति से भाग देकर समान शून्यों को काट देने के बाद ऊपर नीचे की संख्याओं में चौदह से भाग देने पर १५ सागरोपम प्रमाण तृतीय संस्थान और संहनन की जघन्य स्थिति समझना चाहिये।
चतुर्थ संस्थान और संहनन की उत्कृष्ट स्थिति सोलह कोडाकोडी सागरोपम की है। उसमें मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति से भाग देने और समान शून्यों को काट देने के बाद ऊपर नीचे की संख्या में दो से भाग देने पर प्राप्त ८/३५ सागरोपम प्रमाण चतुर्थ संस्थान और संहनन की जघन्य स्थिति है ।
पंचम संस्थान और संहनन की उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण है । उसे मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति से भाग देकर समान शून्यों को काटने के बाद ऊपर नीचे की संख्या में दो से भाग देने पर ६/३५ सागरोपम प्रमाण दोनों की जघन्य स्थिति जानना चाहिये।
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