Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ५
स्थानों में भूयस्कर आदि प्रकारों का निर्देश करते हैं कि इन नौ स्थानों में आठ भूयस्कार, आठ अल्पतर, नौ अवस्थित तथा पांच अवक्तव्योदय होते हैं । जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
मोहनीय के नौ उदयस्थानों में एक के उदयस्थान से उत्तरोत्तर क्रमशः दो आदि के उदयस्थान में जाने पर आठ भूयस्कार होते हैं तथा इसी प्रकार दस आदि उदयस्थान से नौ आदि के उदयस्थानों में क्रमशः नीचे-नीचे आने पर आठ अल्पतर समझ लेना चाहिये तथा उदयस्थानों के नौ होने से अवस्थितोदय नौ हैं। क्योंकि प्रत्येक उदयस्थान अमुक काल तक उदय में हो सकता है ।
अवक्तव्योदय पांच हैं- एक, छह, सात, आठ और नौ प्रकृतिक । इनमें से उपशांतमोहगुणस्थान से अद्धाक्षय से च्युत होकर सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान में प्रवेश करने पर प्रथम समय में संज्वलन लोभ का उदय होता है, तब पहले समय में संज्वलन लोभरूप एकप्रकृतिक अवक्तव्योदय होता है । जब उपशांतमोहगुणस्थान से भवक्षय होने के कारण च्युत होकर अविरतसम्यग्दृष्टि देव होता है, तब पहले समय में यदि वह क्षायिक सम्यग्दृष्टि हो और भय, जुगुप्सा का उदय न हो तो उस पहले समय में अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन क्रोधादि में से किन्ही भी क्रोधादि तीन पुरुषवेद और हास्य रति युगल - ये छह प्रकृतियां उदय में आती हैं । इस प्रकार छह प्रकृति का उदय रूप दूसरा अवक्तव्योदय होता है । यदि वह क्षायिक सम्यग्दृष्टि न हो तो पहले समय में सम्यक्त्वमोहनीय का वेदन करता है | 2
१ देवगति में भव के प्रथम समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त हास्य-रति का ही उदय होता है। इसीलिये यहाँ हास्य- रति ये दो प्रकृतियां ग्रहण की हैं ।
२ किन्हीं - किन्हीं आचार्यों का मत है कि ग्यारहवें गुणस्थान से जो भवक्षय से गिरता है वह अनुत्तर विमान में उत्पन्न होता है और भव के प्रथम समय
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