Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा : १६
६७
बताये गये चार उदयस्थानों को इन छह के साथ मिलाने पर कुल दस उदयस्थान होते हैं । ये उदयस्थान केवली भगवान के होते हैं। ... यद्यपि केवली भगवान के कुल मिलाकर दस उदयस्थान होते हैं परन्तु ग्यारह, वारह, तेईस, चौबीस प्रकृतिक इन चार उदयस्थानों में भूयस्कार नहीं होते हैं। जिसका कारण सहित उल्लेख ऊपर किया जा चुका है । शेष छह उदयस्थानों में अर्थात् उनतीस से लेकर चौंतीस प्रकृतिक उदयस्थानों में छह भूयस्कारोदय होते हैं और वे सामान्य केवली और तीर्थंकर केवली की अपेक्षा जानना चाहिये ।।
इन केवलीप्रायोग्य दस उदयस्थानों में नौ अल्पतरोदय जानना चाहिये और वे चौंतीस प्रकृतिक उदयस्थान को छोड़कर शेष सभी में समझना चाहिये।
विग्रहगति में वर्तमान क्षायिक सम्यक्त्वी अविरत सम्यग्दृष्टि के चवालीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। उन चवालीस प्रकृतियों के. नाम इस प्रकार हैं
१ योग के रोधकाल में इकतीस और बत्तीस के उदय में वर्तमान सामान्य
के वली और तीर्थंकर केवली अयोगि अवस्था को प्राप्त करते हैं, तब उनके ग्यारह और बारह का उदय होता है तथा जब समुद्घात करते हैं तब इन दोनों के दूसरे समय में औदारिकमिश्रयोग में रहते स्वर आदि प्रकृतियों का उदय कम किया जाता है तब तीस और उनतीस का उदय होता है और कार्मणयोग में रहते प्रत्येक आदि छह प्रकृतियों का उदय कम होता है तब चौबीस और तेईस का उदय होता है और तेतीस और चौंतीस के उदय वाले स्वर का रोध करते हैं तब उनको बत्तीस और तेतीस का उदय होता है और उच्छ्वास का रोध होने पर इकतीस और बत्तीस का उदय होता है। इस प्रकार ११, १२, ३०, २६, २४, २३, ३३, ३२ और ३१ प्रकृतिक ये नौ अल्पतरोदय होते हैं ।
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